सुप्रीम कोर्ट ने UYRB से अतिरिक्त पानी के लिए दिल्ली सरकार की याचिका पर फैसला करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उस याचिका का निपटारा किया। उक्त याचिका में संकटग्रस्त राष्ट्रीय राजधानी को तत्काल पानी छोड़ने के लिए हरियाणा राज्य को निर्देश देने की मांग की गई थी। ऐसा करते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार को ऊपरी यमुना नदी बोर्ड (UYRB) से संपर्क करने का निर्देश देते हुए कहा कि राज्यों के बीच यमुना के पानी के बंटवारे से संबंधित मुद्दा एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की वेकेशन बेंच ने कहा कि कोर्ट के पास पानी के बंटवारे के मुद्दे से निपटने के लिए विशेषज्ञता नहीं है।
न्यायालय ने आदेश दिया,
"इस मुद्दे पर 1994 के एमओयू में पक्षों की सहमति से गठित निकाय को विचार करना चाहिए। चूंकि UYRB ने मानवीय आधार पर अतिरिक्त 150 क्यूसेक पानी की आपूर्ति के लिए दिल्ली को पहले ही आवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, इसलिए यदि ऐसा आवेदन पहले से नहीं किया गया तो आज शाम 5 बजे तक किया जाना चाहिए। उसके बाद UYRB बैठक बुलाएगा और मामले में जल्द से जल्द निर्णय लेगा। यदि आवश्यक हो तो बोर्ड दिन-प्रतिदिन आधार पर बैठक बुला सकता है। रिट याचिका का निपटारा किया जाता है।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि यह मुद्दा बार-बार होने वाले मुकदमेबाजी का हिस्सा बन गया है। आज के आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि 2018 में न्यायालय के समक्ष इसी तरह का आवेदन दायर किया गया। उसके बाद एक समिति नियुक्त की गई। तब भी न्यायालय ने हरियाणा राज्य को कोई निर्देश जारी करने से इनकार किया था।
इस संदर्भ में न्यायालय ने बोर्ड की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी की दलीलें भी दर्ज कीं। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को बोर्ड द्वारा सुलझाया जा सकता है, न कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा, जिसके पास इस मामले में आवश्यक विशेषज्ञता नहीं है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश राज्य ने भी कहा कि इस मुद्दे को पक्षों द्वारा सुलझाया जा सकता है।
अतिरिक्त जल की उपलब्धता के बारे में हिमाचल प्रदेश राज्य द्वारा बयान वापस लेना
गौरतलब है कि 06 जून को न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार के इस रुख को ध्यान में रखते हुए कि उनके पास अतिरिक्त जल है, उन्हें हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज में 137 क्यूसेक जल स्थानांतरित करने का निर्देश दिया और हरियाणा सरकार से हिमाचल प्रदेश से प्राप्त अतिरिक्त जल को दिल्ली में स्थानांतरित करने में सहायता करने को कहा।
हालांकि, न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश द्वारा दायर पत्र का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि उसके पास कोई अतिरिक्त जल नहीं बचा है, क्योंकि उसे पहले ही छोड़ दिया गया है।
राज्य को अवमानना की चेतावनी देते हुए न्यायालय ने कहा,
“जिस अधिकारी ने वह चार्ट दिया, वह कह रहा है कि हमारे पास 137 क्यूसेक अतिरिक्त जल है और अतिरिक्त एजी को स्थिति के बारे में उचित जानकारी नहीं दी गई। अब आप पत्र जारी कर रहे हैं कि 137 पहले से ही पाइपलाइन में है... अगर आपके पास अतिरिक्त पानी है और आप उस अतिरिक्त पानी की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं तो आप अवमानना कर रहे हैं।''
सुनवाई के दौरान हिमाचल प्रदेश के एडवोकेट जनरल ने स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया। उन्होंने न्यायालय को बताया कि अधिकारी (वर्चुअली) उपस्थित हैं और उन्होंने माफी मांगी। उन्होंने कहा कि मंशा स्पष्ट नहीं की गई। हालांकि, न्यायालय ने इसका खंडन करते हुए कहा कि यह एक गंभीर और संवेदनशील समस्या है। आप पहले के बयान को छिपाने के लिए अपने बयान के नतीजों को नहीं समझते हैं... आपने इसके परिणामों को समझे बिना न्यायालय के समक्ष ऐसा आकस्मिक बयान दिया। न्यायालय ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि अगर यह इतना महत्वपूर्ण मामला नहीं होता तो राज्य को अवमानना के लिए दोषी ठहराने के लिए इसे लंबित रखा जाता।
इस संदर्भ में, न्यायालय ने अपने आदेश में निम्नलिखित बातें दर्ज कीं:
“जब हरियाणा राज्य ने हिमाचल प्रदेश राज्य से न्यायालय के आदेश के अनुसार अतिरिक्त 137 क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बारे में सूचित करने का अनुरोध किया तो जल शक्ति विभाग ने 6 जून के अपने पत्र द्वारा सूचित किया कि यमुना नदी में पहले से ही 137 क्यूसेक अप्रयुक्त पानी बह रहा है। सुनवाई के दौरान जब हमने उनसे पूछा...एलएजी ने कहा कि अधिशेष/अतिरिक्त पानी की उपलब्धता के बारे में पहले दिया गया बयान सही नहीं था और उन्हें उस बयान को वापस लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि 6 जून के संचार में जो उल्लेख किया गया, उसके मद्देनजर हिमाचल प्रदेश राज्य के पास अतिरिक्त 136 क्यूसेक पानी उपलब्ध नहीं है। हिमाचल प्रदेश के ए.जी. द्वारा दिए गए बयान के मद्देनजर, 6 जून, 2024 के हमारे अंतरिम आदेश का आधार ही नहीं रह गया। हम उस चरण पर पहुंच गए हैं, जहां हम रिट याचिका दायर करने की तिथि पर संतुष्ट थे।”
इसके अलावा, बेंच ने टैंकर माफिया जैसे कई कारणों से दिल्ली में पानी की बर्बादी पर गंभीर चिंता जताई। दिल्ली सरकार से पूछा कि क्या इसके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई। साथ ही स्पष्ट रूप से कहा कि अगर कार्रवाई नहीं की गई तो मामला दिल्ली पुलिस को सौंप दिया जाएगा। इसके अनुसार, कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पानी के अवैध परिवहन के लिए की गई कार्रवाई के खिलाफ हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया और मामले की सुनवाई आज तक के लिए स्थगित कर दी।
जीएनसीटीडी की ओर से वर्चुअली पेश हुए सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने कहा कि पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कोर्ट इस मुद्दे को सुलझाने के लिए समिति गठित करे। यह कहते हुए कि तकनीकी कार्यवाही दिल्ली के आसन्न जल संकट का समाधान नहीं है, सिंघवी ने संकट को हल करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की ओर भी इशारा किया।
उन्होंने कहा,
“अपनी कार न धोने जैसे अलग-अलग निर्देश जारी किए गए। माननीय जज कोई और निर्देश दें, हमें इसे लागू करने में खुशी होगी। यह एक संयुक्त प्रयास है।”
सिंघवी ने एडवोकेट शादान फरासत के साथ मिलकर इस बात पर भी प्रकाश डाला कि वजीराबाद में जल स्तर अपने इष्टतम स्तर पर कायम नहीं है।
ध्यान रहे कि इससे पहले न्यायालय ने UYRB को 5 जून को सभी हितधारक राज्यों की एक आपात बैठक बुलाने और बैठक के मिनट्स तथा सुझाए गए कदमों को 6 जून तक प्रस्तुत करने को कहा था।
बैठक में बोर्ड ने सिफारिश की,
“मानसून की शुरुआत से पहले या 30 जून, 2024 तक, जो भी पहले हो, वर्तमान गर्मी के मौसम के दौरान पेयजल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए दिल्ली सरकार डीडी8/सीएलसी/डीएसबी के माध्यम से मानवीय आधार पर 150 क्यूसेक अतिरिक्त पानी छोड़ने पर विचार करने के लिए हरियाणा सरकार को औपचारिक अनुरोध भेज सकती है।”
इस संबंध में फरासत ने न्यायालय को यह भी अवगत कराया कि याचिकाकर्ता ने यह अनुरोध भेजा; हालांकि, उन्हें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
अपनी ओर से हरियाणा राज्य के लिए सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने प्रस्तुत किया कि वजीराबाद में जल स्तर पूरे समय कायम है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में आवंटन और माप के अत्यधिक तकनीकी पहलू शामिल हैं और माप कहां होना चाहिए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि बोर्ड की स्थापना इसकी तकनीकी विशेषज्ञता के कारण की गई। अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला दिया, जिसमें याचिकाकर्ता को बोर्ड से संपर्क करने के लिए कहा गया।
अंत में, उन्होंने यह भी कहा कि बवाना, द्वारका और ओखला में तीन अतिरिक्त जल उपचार योजनाओं के निर्माण के बाद वजीराबाद में जल स्तर बनाए रखना प्रासंगिक नहीं है।
केस टाइटल: दिल्ली सरकार बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, डायरी नंबर 25504-2024