सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति के बिना पद पर कार्यरत सरकारी अधिकारियों को दो उच्च वेतनमान देने के हाईकोर्ट के निर्देश की पुष्टि की

Update: 2024-02-07 08:31 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (6 फरवरी) को हिमाचल प्रदेश सरकार की याचिका खारिज कर दी, जिसमें कर्मचारी को 12 साल और 24 साल की सेवा पूरी करने पर अगले उच्च वेतनमान में दो पदोन्नति देने को चुनौती दी गई थी।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि की, जिसमें राज्य को पद के लिए किसी भी पदोन्नति के अवसर के अभाव में एक कर्मचारी को दो पदोन्नति प्रदान करने का निर्देश दिया गया।

हाईकोर्ट का निर्णय त्रिपुरा राज्य और अन्य बनाम के.के. रॉय के मामले पर आधारित था, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पद के लिए पदोन्नति के कोई रास्ते नहीं हैं तो संबंधित राज्य सरकार को कर्मचारी को कम से कम दो उच्च वेतनमान देने के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर नीति बनानी चाहिए।

हाईकोर्ट ने के.के. रॉय मामले पर भरोसा करते हुए टिप्पणी की,

“यह माना गया कि पदोन्नति सेवा की शर्त है, राज्य पदोन्नति के अवसर प्रदान करने के लिए बाध्य है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि संबंधित कर्मचारी को 12 वर्ष और 24 वर्ष की सेवा पूरी करने पर अगले उच्च वेतनमान में दो पदोन्नति दी जाए।''

विवाद का सार यह है कि कर्मचारी की नियुक्ति हिमाचल प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य सेवा विभाग में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर हुई थी, लेकिन उसे क्लर्क का काम सौंपा जा रहा था। उनका मामला यह है कि उक्त कार्यालय में कार्यरत अन्य लिपिकों को सहायक, सीनियर सहायक, उपाधीक्षक आदि पदों पर पदोन्नति मिल रही है, लेकिन उन्हें नहीं। उनके मुताबिक वह भी क्लर्क की ड्यूटी निभा रहे हैं और उन्हें भी उसी तरह प्रमोशन मिलना चाहिए।

राज्य ने कर्मचारी को इस आधार पर पदोन्नति देने से इनकार किया कि उसे कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में नियुक्त किया गया, जो कि क्लर्कों के कैडर में शामिल पदों से अलग पद है और कंप्यूटर ऑपरेटरों के पदों को उच्चतर पदोन्नति के लिए किसी भी फीडर कैडर में शामिल नहीं किया गया। पद पर नियुक्ति के बाद से वह कम्प्यूटर ऑपरेटर बने हुए हैं।

राज्य के निर्णय की आलोचना करते हुए कर्मचारी ने हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की, जिसे स्वीकार कर लिया गया। जबकि के.के. रॉय मामले पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट ने इस प्रकार निर्णय दिया,

"माननीय सुप्रीम कोर्ट की पूर्वोक्त मिसाल पर भरोसा करते हुए वर्तमान याचिका का निपटारा उत्तरदाताओं को यह निर्देश देते हुए किया जाता है कि याचिकाकर्ता को वेतनमान के पदानुक्रम में दो उच्च वेतनमान दिए जाएं, जिनमें से एक 12 वर्ष पूरे होने पर दिया जाए। दूसरा जब उसने 24 वर्ष की सेवा पूरी कर ली हो। याचिकाकर्ता सभी परिणामी मौद्रिक लाभों का हकदार होगा।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले पर मुहर लगाई।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने टिप्पणी की,

"माना कि प्रतिवादी ने अपनी सेवानिवृत्ति तक 1981 से 2010 तक केवल एक पद पर काम किया, यानी कंप्यूटर ऑपरेटर और ऐसा कोई कारण सामने नहीं आया कि उसे अपने पूरे सेवा करियर में एक बार भी पदोन्नत क्यों नहीं किया गया, अगर पदोन्नति के पद उपलब्ध थे, जैसा कि अपीलकर्ताओं द्वारा प्रचार किया गया। इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि क्या प्रतिवादी को कभी पदोन्नति की पेशकश की गई, जिसे या तो उसने अस्वीकार कर दिया या जिसके लिए उसे योग्य नहीं पाया गया। इस प्रकार, तथ्य यह है कि प्रतिवादी लगभग 28 वर्षों से एक ही पद पर बना हुआ है, जो निश्चित रूप से स्थिरता है।

यह डिवीजन बेंच के आक्षेपित आदेश के विरुद्ध है कि राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका (सिविल) दायर की।

जब मामले को सुनवाई के लिए बुलाया गया तो अदालत ने एस.एल.पी. पर विचार करने में अनिच्छा दिखाई और विवादित आदेश पर गौर करने के बाद अदालत ने इस प्रकार नोट किया:

“एकल न्यायाधीश के फैसले और हमारे सामने डिविजन बेंच की चुनौती को पढ़ा गया और हमने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए तर्क का मूल्यांकन किया। प्रतिवादी को उसके पूरे सेवा करियर में एक बार भी पदोन्नति के लाभ से वंचित किया गया और हाईकोर्ट ने कहा कि नियोक्ता ने कभी भी प्रतिवादी को कोई पदोन्नति की पेशकश नहीं की या वह पदोन्नति के लिए अयोग्य पाया गया।

इस एसएलपी में कोई योग्यता नहीं पाते हुए तदनुसार न्यायालय द्वारा इसे खारिज कर दिया जाता है।

केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम सुरेंद्र कुमार परमार

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