सुप्रीम कोर्ट ने मां, पत्नी और 2 साल की बेटी की कथित हत्या के लिए मौत की सजा पाए व्यक्ति को बरी किया

Update: 2024-10-17 08:39 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की मां, पत्नी और दो साल की बेटी की कथित हत्या के लिए दोषसिद्धि और मौत की सजा खारिज की। कोर्ट ने उक्त आदेश यह देखते हुए दिया कि अभियोजन पक्ष घटनाओं की अखंडित श्रृंखला साबित करने में असमर्थ था।

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने फैसला सुनाया।

फैसला सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा:

"हमने पाया कि अभियोजन पक्ष किसी भी हस्तक्षेप करने वाली परिस्थितियों को साबित करने में विफल रहा। चूंकि यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला है, इसलिए किसी भी मामले में अभियोजन पक्ष घटनाओं की अखंडित श्रृंखला साबित करने में सक्षम नहीं है। इसलिए हमने अपील को अनुमति दी।"

अपीलकर्ता-विश्वजीत कर्बा मसलकर को आईपीसी की धारा 302, 307 और 201 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था। अपील में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मृत्युदंड की पुष्टि की, यह देखते हुए कि मामले को "दुर्लभतम में से दुर्लभतम" माना जाना चाहिए।

हत्या की क्रूरता पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि मसलकर ने अपनी मां, पत्नी और बेटी की योजनाबद्ध, निर्मम हत्या की।

कोर्ट ने कहा,

"परिवार को खत्म करके, आरोपी ने समाज की बुनियादी नींव को तोड़ने की कोशिश की है। इस तरह इस मामले ने न्यायालय की न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दिया।

हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर मसलकर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मामले की पृष्ठभूमि

मसलकर पुणे स्थित कंपनी में सुविधा कार्यकारी के रूप में काम कर रहा था। उसने पुलिस को बताया कि उसके घर में चोरी हुई, जिसके दौरान उसकी मां, पत्नी और बेटी की मौत हो गई और उसका पड़ोसी घायल हो गया।

उक्त सूचना को शिकायत के रूप में माना गया और आईपीसी की धारा 302 और 397 के तहत मामला दर्ज किया गया। जांच के दौरान, यह पाया गया कि घर से सोने के गहने या नकदी की चोरी नहीं हुई, न ही कोई जबरन प्रवेश किया गया। यह भी पाया गया कि मसलकर का विवाहेतर प्रेम संबंध था। पुलिस को मसलकर पर अपनी पत्नी, मां और बच्चे की हत्या करने का संदेह था, साथ ही उसने अपने पड़ोसी को भी चोट पहुंचाई थी, क्योंकि उसने उक्त हत्या को देखा होगा। तदनुसार, जांच की गई और मसलकर को गिरफ्तार कर लिया गया। जांच पूरी होने के बाद ट्रायल जज ने सामग्री की जांच की और मसलकर को दोषी करार देते हुए उसे मौत की सजा सुनाई।

इस फैसले के खिलाफ मसलकर ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट के समक्ष राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि शुरू में मसलकर ने पुलिस को यह विश्वास दिलाने के लिए गुमराह किया था कि चोरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी पत्नी, मां और बेटी की मौत हो गई। हालांकि, बाद में चोरी किए गए कथित सोने के गहने घर में ही एक फोटो फ्रेम के पीछे छिपे पाए गए। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि मसलकर की निशानदेही पर एक हथौड़ा बरामद किया गया।

सभी सामग्री की जांच करने के बाद हाईकोर्ट ने मृत्युदंड की पुष्टि करते हुए कहा,

"हमने गंभीर और कम करने वाली परिस्थितियों का विस्तृत बैलेंस शीट तैयार किया। वर्तमान मामले में केवल 6 गंभीर परिस्थितियां उपलब्ध हैं। इसके विपरीत कोई भी कम करने वाली परिस्थितियां उपलब्ध नहीं हैं। गंभीर और कम करने वाली परिस्थितियों का बैलेंस शीट गंभीर परिस्थितियों के पक्ष में झुकता है। इसके मद्देनजर, हम पाते हैं कि वर्तमान मामले को दुर्लभतम मामले के रूप में माना जाना चाहिए।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दुर्लभतम मामले का ट्रायल समाज की धारणा पर निर्भर करता है और दृष्टिकोण "समाज केंद्रित" होना चाहिए न कि "जज केंद्रित"। ट्रायल लागू किया जाना चाहिए कि क्या समाज संबंधित अपराध के लिए मृत्युदंड देने पर विचार करेगा।"

इस निर्णय को चुनौती देते हुए मसलकर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

केस टाइटल: विश्वजीत केरबा मसलकर बनाम महाराष्ट्र राज्य, सीआरएल.ए. नंबर 213/2020

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