राज्य प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-11-20 04:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि राज्य प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने कहा,

"राज्य को प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से निजी संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति देना नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करेगा और सरकार में जनता का विश्वास खत्म करेगा।"

यह टिप्पणी हरियाणा राज्य द्वारा प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति के खिलाफ प्रतिकूल कब्जे का दावा करने वाली अपील को खारिज करते हुए किए गए फैसले में की गई।

निजी पक्षों ने 1981 में राष्ट्रीय राजमार्ग 10 से सटे 18 बिस्वा पुख्ता की भूमि के संबंध में दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि हरियाणा लोक निर्माण विभाग ने इस पर अनधिकृत रूप से कब्जा कर लिया। राज्य ने इस मुकदमे का विरोध करते हुए दावा किया कि वे 1879-80 से लगातार और निर्बाध रूप से इस भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से उन्होंने स्वामित्व सिद्ध कर लिया।

निचली अदालत ने वादी के पक्ष में मुकदमा चलाने का आदेश दिया। हालांकि, प्रथम अपीलीय न्यायालय ने डिक्री को पलट दिया और मुकदमा खारिज कर दिया। दूसरी अपील में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने डिक्री बहाल की, जिसके खिलाफ राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रतिकूल कब्जे का दावा करके राज्य ने वादी के स्वामित्व निहित रूप से स्वीकार किया था। राजस्व रिकॉर्ड प्रविष्टियां, सेल डीड और उत्परिवर्तन प्रविष्टियां भी वादी के स्वामित्व को स्थापित करती हैं।

न्यायालय ने कहा,

"राजस्व रिकॉर्ड सरकारी अधिकारियों द्वारा नियमित रूप से अपने कर्तव्यों के दौरान बनाए रखे जाने वाले सार्वजनिक दस्तावेज हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 35 के तहत सही होने का अनुमान है। हालांकि यह सच है कि राजस्व प्रविष्टियां अपने आप में स्वामित्व प्रदान नहीं करती हैं, वे कब्जे के साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हैं। अन्य साक्ष्यों द्वारा पुष्टि किए जाने पर स्वामित्व के दावे का समर्थन कर सकती हैं।"

प्रतिकूल कब्जे का दावा खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"यह मौलिक सिद्धांत है कि राज्य अपने नागरिकों की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता है।"

विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2020) 2 एससीसी 569 में दिए गए फैसले का संदर्भ दिया गया।

अदालत ने यह भी माना कि अपीलकर्ताओं द्वारा जिन कृत्यों पर भरोसा किया गया- जैसे कि बिटुमेन ड्रम लगाना, अस्थायी संरचनाएं बनाना और 1980 में सीमा दीवार का निर्माण करना - प्रतिकूल कब्जे का गठन नहीं करते हैं।

अदालत ने कहा,

"प्रतिकूल कब्जे के लिए वैधानिक अवधि के लिए निरंतर, खुला, शांतिपूर्ण और वास्तविक मालिक के प्रति शत्रुतापूर्ण कब्जा होना आवश्यक है। इस मामले में अपीलकर्ताओं के कब्जे में शत्रुता और अपेक्षित अवधि का तत्व नहीं है।"

केस टाइटल: हरियाणा राज्य बनाम अमीन लाल (अब मृतक) कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से

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