न्यायालय की नीलामी के बाद जारी बिक्री प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से पंजीकृत नहीं; नीलामी क्रेता को इसे प्राप्त करने के लिए स्टाम्प ड्यूटी जमा करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सफल नीलामी क्रेता को न्यायालय की कार्यवाही में की गई नीलामी के अनुसरण में बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने के लिए स्टाम्प शुल्क जमा करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्टाम्प शुल्क तभी देय होगा जब नीलामी क्रेता प्रमाणपत्र का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए करेगा, लेकिन तब नहीं जब प्रमाणपत्र यथावत रहेगा।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा,
“ऊपर चर्चित कानून की स्थिति यह स्पष्ट करती है कि प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जारी बिक्री प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड नहीं है। जब प्राधिकृत अधिकारी द्वारा रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी को बिक्री प्रमाणपत्र की एक प्रति अग्रेषित की जाती है तो रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 89(4) के तहत मात्र दाखिल करना ही पर्याप्त है। हालांकि, स्टाम्प एक्ट की पहली अनुसूची के क्रमशः अनुच्छेद 18 और 23 का अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जब नीलामी क्रेता रजिस्ट्रेशन के लिए मूल बिक्री प्रमाणपत्र प्रस्तुत करता है तो उस पर उक्त अनुच्छेदों के अनुसार स्टाम्प शुल्क लगेगा। जब तक बिक्री प्रमाणपत्र वैसा ही रहेगा, तब तक उसका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है। जब नीलामी क्रेता किसी अन्य उद्देश्य के लिए प्रमाणपत्र का उपयोग करता है, तभी स्टाम्प शुल्क आदि के भुगतान की आवश्यकता उत्पन्न होगी।”
साथ ही न्यायालय ने माना कि सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा जारी बिक्री प्रमाणपत्र को रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 17(1) के तहत रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि प्रमाणपत्र टाइटल को हस्तांतरित नहीं करता है, बल्कि यह केवल शीर्षक का साक्ष्य है।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार कानून की स्थिति तय हो गई कि नीलामी बिक्री की पुष्टि के अनुसरण में क्रेता को जारी किया गया बिक्री प्रमाणपत्र केवल ऐसे टाइटल का साक्ष्य है और रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 17(1) के तहत रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं है। यह बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने से नहीं है, जो नीलामी क्रेता के पक्ष में टाइटल हस्तांतरित करता है। टाइटल बिक्री के सफल समापन और बिक्री के खिलाफ सभी आपत्तियों के निपटारे के बाद सक्षम प्राधिकारी द्वारा इसकी पुष्टि होने पर हस्तांतरित होता है।”
यह मामला मेसर्स पंजाब यूनाइटेड फोर्ज लिमिटेड से जुड़ा है, जिसे कंपनी जज ने बंद करने का आदेश दिया, जबकि IFCI को अपनी गिरवी रखी गई संपत्तियों को बेचने का अधिकार है। प्रतिवादी-मेसर्स फेरस अलॉय फोर्जिंग्स प्राइवेट लिमिटेड ने नीलामी जीती, और बिक्री की पुष्टि परिसमापक और हाईकोर्ट ने की। जब प्रतिवादी ने बिक्री प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया तो रजिस्ट्रार ने उच्च मूल्यांकन पर स्टाम्प शुल्क की मांग की, जिसके कारण प्रतिवादी ने रिट याचिका के माध्यम से इसे चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने प्रतिवादी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने के समय स्टाम्प शुल्क की आवश्यकता नहीं होती है।
इससे व्यथित होकर राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसने इस बात पर विचार किया कि स्टाम्प एक्ट और रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने के लिए स्टाम्प शुल्क अनिवार्य है या नहीं। न्यायालय ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों को बरकरार रखा, जिसमें स्पष्ट किया गया कि बिक्री प्रमाणपत्र स्वामित्व का साक्ष्य है, लेकिन इसे हस्तांतरित नहीं करता है। सक्षम प्राधिकारी द्वारा बिक्री की पुष्टि के बाद स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है।
दिल्ली नगर निगम बनाम प्रमोद कुमार गुप्ता (1991) का हवाला देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि बिक्री प्रमाणपत्र न तो शीर्षक हस्तांतरित करते हैं और न ही स्टाम्प शुल्क की आवश्यकता होती है। इसने मेसर्स एस्जेपी इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम केनरा बैंक (2021) और पंजीकरण महानिरीक्षक बनाम जी. मधुरम्बल (2022) का भी संदर्भ दिया, जिसमें पुष्टि की गई कि धारा 89(4) के तहत प्रमाणपत्र दाखिल करना पंजीकरण के लिए पर्याप्त है।
अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: पंजाब राज्य और अन्य बनाम मेसर्स फेरस अलॉय फोर्जिंग्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।