S.319 CrPC | सह-आरोपी के दोषमुक्त/दोषी ठहराए जाने के बाद अतिरिक्त आरोपी को बुलाने का आदेश कायम रखने योग्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-12 05:16 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में CrPC की धारा 319 के तहत व्यक्ति को हत्या के मुकदमे के लिए बुलाने का आदेश रद्द किया, जबकि मूल आरोपी व्यक्तियों का मुकदमा पहले ही समाप्त हो चुका था।

CrPC की धारा 319 ट्रायल कोर्ट को किसी भी व्यक्ति को, जो आरोपी नहीं है, मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाने का अधिकार देती है, यदि मुकदमे के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य से ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा व्यक्ति भी अपराध में शामिल है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें सम्मन आदेश बरकरार रखा गया था। इसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता को सम्मन करना सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य मामले में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार नहीं था।

न्यायालय ने कहा,

"संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से माना है कि यदि इस तरह का समन आदेश पारित किया जाता है, चाहे दोषसिद्धि के मामले में दोषसिद्धि आदेश के बाद या सजा सुनाए जाने के बाद तो वह स्थायी नहीं हो सकता है।"

वर्तमान मामले में एडिशनल सेशन जज ने 21 मार्च, 2012 को कुछ आरोपियों को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और अन्य को बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने दोषी पाए गए आरोपियों के लिए दोषसिद्धि आदेश पारित किया और शेष आरोपियों को बरी कर दिया। उसी दिन दोषी ठहराए गए आरोपियों के लिए सजा दर्ज करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 319 को लागू किया। अपीलकर्ता को अपराध के लिए मुकदमे में उपस्थित होने के लिए बुलाया। इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।

इस प्रकार, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अपीलकर्ता के एडवोकेट पुनीत सिंह बिंद्रा ने तर्क दिया कि अन्य आरोपियों के संबंध में मुकदमे के समापन के बाद अपीलकर्ता को समन करना कानूनी रूप से स्थायी नहीं था।

उन्होंने सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया और तर्क दिया कि चूंकि दोषसिद्धि और सजा का आदेश पहले ही पारित हो चुका है, इसलिए धारा 319 का आह्वान वैध नहीं है।

राज्य के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया कि समन आदेश उसी तिथि को जारी किया गया, जिस तिथि को दोषसिद्धि और सजा का आदेश जारी किया गया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि समन आदेश उसी समय पारित किया गया, जिस दिन सजा का आदेश जारी किया गया, जिससे यह कानूनी रूप से संधारणीय हो गया।

सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले ने इस मुद्दे को संबोधित किया कि क्या किसी ट्रायल कोर्ट के पास CrPC की धारा 319 के तहत अन्य आरोपियों के संबंध में ट्रायल के समापन के बाद अतिरिक्त आरोपियों को समन करने की शक्ति है।

फैसले के अनुसार, दोषसिद्धि के मामलों में सजा सुनाए जाने से पहले CrPC की धारा 319 के तहत शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए। यदि दोषमुक्ति का आदेश शामिल है तो दोषमुक्ति की घोषणा से पहले शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।

संविधान पीठ ने उन मामलों के लिए दिशा-निर्देश दिए, जहां समन आदेश और दोषसिद्धि का फैसला एक ही दिन पारित किया जाता है, जिसमें कहा गया कि प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच की जानी चाहिए।

वर्तमान अपील में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने 21 मार्च, 2012 को पहले दिन के पहले भाग में दोषसिद्धि और बरी करने के आदेश पारित किए, उसके बाद दूसरे भाग में सजा का आदेश दिया। सजा सुनाने के बाद ही ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को बुलाने के लिए CrPC की धारा 319 के तहत समन आदेश जारी किया।

सुखपाल सिंह खैरा के फैसले के आलोक में न्यायालय ने माना कि चूंकि समन आदेश सजा लगाए जाने के बाद पारित किया गया, इसलिए यह टिकने योग्य नहीं था।

इसलिए न्यायालय ने अपील स्वीकार की और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और अपीलकर्ता को समन करने के एडिशनल सेशन जज का आदेश खारिज कर दिया।

केस टाइटल- देवेंद्र कुमार पाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।

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