दस्तावेज़ को अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए जाने से पहले जालसाजी की गई हो तो CrPC की धारा 195 लागू नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-19 05:19 GMT

जालसाजी के आरोपों से जुड़े मामले से निपटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि न्यायालय में दायर दस्तावेजों की जालसाजी के आरोप की जांच करने के लिए CrPC की धारा 195(1)(बी)(ii) के तहत कोई प्रतिबंध नहीं, जब ऐसी जालसाजी उसके प्रस्तुत किए जाने से पहले की गई हो।

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 195(1)(बी)(ii) के अनुसार, न्यायालय न्यायालय की कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए दस्तावेज के संबंध में जालसाजी के अपराध का संज्ञान केवल उस न्यायालय द्वारा अधिकृत अधिकारी (जहां जाली दस्तावेज प्रस्तुत किया गया था) की लिखित शिकायत पर ले सकता है।

आरोपों के अनुसार, प्रतिवादियों ने धोखाधड़ी से स्टाम्प पेपर प्राप्त किया और अपंजीकृत बिक्री समझौता तैयार किया। इसके बाद उन्होंने कुछ राहत की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया और मुकदमे में जाली दस्तावेज दायर किया गया। हालांकि आरोपों से यह संकेत नहीं मिलता कि जब मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन था, तब दस्तावेज जाली थे या नहीं।

प्रतिवादियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ कोर्ट में दायर दस्तावेजों की जालसाजी का आरोप लगाया गया। हाईकोर्ट ने इन कार्यवाहियों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मुकदमे के अंतिम होने तक सिविल कोर्ट में दायर किए गए दस्तावेज की जालसाजी के लिए कोई एफआईआर/निजी शिकायत नहीं हो सकती।

अपीलकर्ता(ओं) ने इसका विरोध किया तो सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने इकबाल सिंह मारवाह एवं अन्य बनाम मीनाक्षी मारवाह एवं अन्य में दिए गए निर्णय के अनुपात को नजरअंदाज कर दिया।

इस निर्णय को उद्धृत करते हुए,

"धारा 195(1)(बी)(ii) CrPC तभी लागू होगी, जब उक्त प्रावधान में उल्लिखित अपराध किसी दस्तावेज के संबंध में तब किए गए हों, जब उसे किसी न्यायालय में कार्यवाही में पेश किया गया हो या साक्ष्य के रूप में दिया गया हो, अर्थात उस समय के दौरान जब दस्तावेज कानूनी हिरासत में था।"

2021 में दीवानी मुकदमों के निपटारे के मद्देनजर, यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट ने गलत धारणा के आधार पर आगे कदम बढ़ाया कि पक्षकारों के बीच दीवानी मुकदमेबाजी अंतिम रूप नहीं ले पाई है।

इकबाल सिंह पर भरोसा करते हुए जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि CrPC की धारा 195(1)(बी)(ii) के तहत प्रतिबंध लागू नहीं होता।

तदनुसार, अपीलों को अनुमति दी गई और हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया गया।

केस टाइटल: अरोकियासामी बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 5805/2023

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