अपनी रक्षा करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने किसी पार्टी का प्रतिनिधित्व न करने के बार एसोसिएशन का प्रस्ताव रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वयं का बचाव करने का अधिकार भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार है और बार एसोसिएशन द्वारा याचिकाकर्ता की ओर से अपने मामले का बचाव करने के लिए उपस्थित होने से बार के अन्य सदस्यों को रोकने के लिए कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की सुप्रीम कोर्ट की बेंच की उक्त टिप्पणी संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए आई, जो अदालत के समक्ष अपना बचाव करने के लिए व्यक्तिगत रूप से पेश हुए।
रिट याचिका 16 मार्च, 2019 को मैसूर बार एसोसिएशन द्वारा पारित प्रस्ताव के खिलाफ दायर की गई, जिसमें निर्णय लिया गया कि एसोसिएशन का कोई भी सदस्य वर्तमान याचिकाकर्ता की ओर से 'वकालतनामा' दाखिल नहीं करेगा।
मैसूर बार एसोसिएशन (प्रतिवादी नंबर 3) को नोटिस दिए जाने के बावजूद, बार एसोसिएशन की ओर से कोई उपस्थिति दर्ज नहीं की गई।
इसलिए विवादित प्रस्ताव पर गौर करने के बाद अदालत का निश्चित विचार था कि इस तरह के प्रस्ताव को अदालत में पारित नहीं किया जा सकता। अदालत ने मैसूर बार एसोसिएशन द्वारा पारित प्रस्ताव रद्द करते हुए एकपक्षीय कार्यवाही करने का फैसला किया।
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा,
“मामले को ध्यान में रखते हुए हमने एकपक्षीय कार्रवाई की। स्वयं का बचाव करने का अधिकार भारत के संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकार है और वकील के रूप में किसी के पेशे को आगे बढ़ाने का हिस्सा होने के नाते मुवक्किल के लिए पेश होने का अधिकार भी मौलिक अधिकार है। ऐसे में उक्त प्रस्ताव रद्द किया जाता है।”
तदनुसार, अदालत ने रिट याचिका की अनुमति दी।