RG Kar Protests| सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट लीडर की रिहाई के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की चुनौती खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने आरजी कर अस्पताल में बलात्कार-हत्या (RG Kar Hospital Rape-Murder) के विरोध में स्टूडेंट लीडर सायन लाहिड़ी को दी गई जमानत के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की चुनौती खारिज की।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ पश्चिम बंगाल की ओर से कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सायन लाहिड़ी को रिहा करने का निर्देश दिया गया। सायन लाहिड़ी पश्चिम बंग छात्र समाज के कथित नेता हैं। यह संगठन नबन्ना में राज्य सचिवालय की ओर विरोध प्रदर्शन और मार्च का आह्वान करता है।
गौरतलब है कि विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण होने का दावा किया गया, लेकिन व्यापक हिंसा हुई, जिसके परिणामस्वरूप प्रदर्शनकारियों और पुलिस कर्मियों दोनों को गंभीर चोटें आईं।
पश्चिम बंगाल राज्य ने प्रस्तुत किया कि विचाराधीन रैली का आयोजन लाहिड़ी सहित तीन व्यक्तियों द्वारा किया गया। कोर्ट को बताया गया कि लाहिड़ी के खिलाफ गैरकानूनी तरीके से एकत्र होने, दंगा करने और जानबूझकर चोट पहुंचाने के अपराधों से संबंधित 11 एफआईआर दर्ज हैं। जब पीठ ने पूछा कि कौन-कौन गंभीर रूप से घायल हुआ है तो वकील ने कहा कि विभिन्न स्थानों पर तैनात 41 पुलिस अधिकारियों को चोटें आई हैं।
जस्टिस पारदीवाला ने पूछा कि लाहिड़ी को उक्त आरोपों के तहत क्यों रखा गया।
उन्होंने आगे कहा,
"यह जमानत का मामला है, इसमें कोई संदेह नहीं है, प्रथम दृष्टया। विचारणीय एकमात्र बिंदु यह है कि मां द्वारा दायर रिट याचिका में यह राहत दी जा सकती है या नहीं, यही संक्षिप्त बिंदु है।"
लाहिड़ी की मां ने उनके खिलाफ एफआईआर रद्द करने के लिए अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया।
अंजलि लाहिड़ी (हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को बताया कि आरोपी पहले सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा था। बाद में उसकी राजनीतिक संबद्धता बदल गई। विरोध प्रदर्शन की सूचना 26 अगस्त को राज्य के अधिकारियों को दी गई और आयोजकों ने राज्य को उन उपद्रवियों की संभावना के बारे में भी सूचित किया, जो शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को खतरे में डाल सकते हैं।
जस्टिस पारदीवाला ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट के समक्ष राज्य के लिए आदर्श दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि वह इस बात पर आपत्ति उठाए कि प्रत्येक एफआईआर रद्द करने के लिए धारा 428 सीआरपीसी के तहत अलग-अलग याचिका क्यों नहीं दायर की गई।
राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि रैली को 'मास्टर माइंड' द्वारा 'आयोजन' किया गया, जिसका नाम गिरफ्तार किए गए अन्य व्यक्तियों द्वारा लिया गया। विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या यह हिंसक होने के उद्देश्य से आयोजित रैली थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणियों का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि कानून के अनुसार शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन किया जाए।
जस्टिस पारदीवाला ने मामले पर आगे विचार करने से इनकार करते हुए कहा:
"यह ठीक है, खारिज, अगला मामला।"
केस टाइटल: पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य बनाम अंजलि लाहिड़ी और अन्य एसएलपी (सीआरएल) संख्या 11938/2024