आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार योग्यता के आधार पर क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी की सीट का दावा कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-08-21 05:38 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का वह आदेश खारिज किया, जिसमें मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित (यूआर) श्रेणी में एडमिशन देने से मना कर दिया गया था।

सौरव यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि SC/ST/OBC जैसी आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवार, यदि वे यूआर कोटे में अपनी योग्यता के आधार पर हकदार हैं तो उन्हें यूआर कोटे के तहत एडमिशन दिया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा,

“मेधावी आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार जो अपनी योग्यता के आधार पर उक्त क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी का हकदार है, उसे उक्त क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी से सीट आवंटित की जानी चाहिए। इसका मतलब है कि ऐसे उम्मीदवार को ST/ST जैसी ऊर्ध्वाधर आरक्षण की श्रेणी के लिए आरक्षित क्षैतिज सीट में नहीं गिना जा सकता।”

तर्क-वितर्क

अपीलकर्ताओं ने कहा कि सौरव यादव के मामले में पारित आदेश को मान्यता न देकर हाईकोर्ट ने गलती की। उन्होंने कहा कि नीति के गलत अनुप्रयोग के कारण विषम स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसमें यूआर-जीएस सीटों पर अपीलकर्ताओं की तुलना में बहुत कम मेधावी व्यक्तियों को प्रवेश मिल गया, जबकि यूआर-जीएस उम्मीदवारों की तुलना में बहुत अधिक मेधावी अपीलकर्ताओं को एडमिशन से वंचित कर दिया गया।

इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने OBC-GS, ST-GS, SC-GS, URGS और EWS-GS में एक और उप-वर्गीकरण का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि चूंकि यह क्षैतिज आरक्षण का मामला था, इसलिए SC/ST/OBC/EWS जैसे ऊर्ध्वाधर आरक्षण की श्रेणी को UR-GS की क्षैतिज श्रेणी में स्थानांतरित करना संभव नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन

अपीलकर्ता के तर्क में दम पाते हुए जस्टिस बीआर गवई द्वारा लिखित निर्णय ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि अनारक्षित श्रेणी के स्टूडेंट की तुलना में अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद, अपीलकर्ताओं को GS-UR सीटें आवंटित नहीं की गईं।

न्यायालय ने कहा,

“निस्संदेह, अपीलकर्ता जो मेधावी थे और जिन्हें UR-GS श्रेणी के विरुद्ध प्रवेश दिया जा सकता था, उन्हें क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण लागू करने में कार्यप्रणाली के गलत अनुप्रयोग के कारण प्रवेश से वंचित कर दिया गया। यह भी विवाद में नहीं है कि कई स्टूडेंट, जिन्होंने अपीलकर्ताओं की तुलना में बहुत कम अंक प्राप्त किए, उन्हें UR-GS सीटों के विरुद्ध एडमिशन दिया गया। यह सौरव यादव के मामलों में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का पूरी तरह से उल्लंघन है।”

न्यायालय ने प्रतिवादी के मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के अनारक्षित सीटों पर प्रवास को प्रतिबंधित करने के कदम को अस्थिर पाया।

न्यायालय ने कहा,

"इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के मेधावी उम्मीदवार, जो अपनी योग्यता के आधार पर UR-GS कोटे के तहत चयनित होने के हकदार थे, उन्हें GS कोटे में खुली सीटों के खिलाफ सीटों से वंचित कर दिया गया।"

ऐसा कहने के बाद अपीलकर्ताओं को क्या राहत प्रदान की जाए, इस सवाल पर न्यायालय ने एस. कृष्णा श्रद्धा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए प्रतिवादियों को UR-GS सीटों के खिलाफ अगले शैक्षणिक सत्र 2024-25 में अपीलकर्ताओं को एडमिशन देने के निर्देश जारी करना उचित पाया।

तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।

केस टाइटल: रामनरेश @ रिंकू कुशवाह और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 2111/2024

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