सुप्रीम कोर्ट ने MBBS एडमिशन में 'NRI' की परिभाषा को व्यापक बनाने के पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल एडमिशन में NRI कोटा के दायरे को व्यापक बनाने के लिए पंजाब सरकार की अधिसूचना रद्द करने के पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए मौखिक रूप से कहा कि इस तरह की 'धोखाधड़ी' बंद होनी चाहिए, क्योंकि इससे मेधावी उम्मीदवारों की कीमत पर पिछले दरवाजे से प्रवेश का रास्ता खुल जाता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें MBBS एडमिशन के लिए अनिवासी भारतीय की परिभाषा को व्यापक बनाने वाली 20 अगस्त की अधिसूचना रद्द कर दी गई थी।
विवादित अधिसूचना के अनुसार, पंजाब सरकार ने NRI उम्मीदवार के अर्थ को व्यापक बनाते हुए उम्मीदवारों के दूर के रिश्तेदारों जैसे चाचा, चाची, दादा-दादी और चचेरे भाई-बहनों को भी अपने दायरे में शामिल कर लिया।
चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की हाईकोर्ट की पीठ ने 11 सितंबर को अधिसूचना को 'अनुचित' करार देते हुए रद्द कर दिया, क्योंकि इससे NRI कोटा का मूल उद्देश्य - वास्तविक NRI को भारत में अध्ययन करने का मौका देना - विफल हो गया।
सीजेआई ने कहा कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए मौजूदा संशोधन 9 अगस्त को मेडिकल दाखिले के लिए प्रॉस्पेक्टस जारी होने के बाद किया गया।
NRI की परिभाषा को बाद में व्यापक बनाने पर सीजेआई ने नाराजगी जताई:
"हम इसे खारिज कर देंगे, इस पर रोक लगा देंगे। हमें धोखाधड़ी को खत्म करना होगा, हाईकोर्ट का आदेश बिल्कुल सही है। यह NRI व्यवसाय धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं है। देखिए पंजाब राज्य ने इसे किस तरह से अंजाम दिया! 9 अगस्त की अधिसूचना के बाद आखिरी तारीख यानी 19-20 अगस्त को आप "वार्ड" श्रेणी का विस्तार करते हुए नई अधिसूचना जारी करते हैं। इसके घातक परिणाम देखिए, जिन उम्मीदवारों के अंक तीन गुना अधिक होंगे, वे एडमिशन खो देंगे और ये सभी लोग पिछले दरवाजे से आएंगे।"
सीजेआई ने कानून के स्थापित सिद्धांत को दोहराने के लिए पी.ए. इनामदार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसले का हवाला दिया। पीए इनामदार मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि NRI के लिए आरक्षित सीटों का उपयोग केवल वास्तविक NRI द्वारा ही किया जाना चाहिए तथा NRI कोटे के तहत प्रवेश देने में योग्यता के तत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
"हमें अपना अधिकार किसी ऐसी चीज को नहीं देना चाहिए, जो स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी वाली श्रेणी है।"
हाईकोर्ट के समक्ष मूल याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट अभिमन्यु भंडारी ने बताया कि वर्तमान मामले में मुख्य याचिकाकर्ता ने 720 में से 202 अंक प्राप्त किए, जबकि गैर-NRI सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार ने 720 में से 637 अंक प्राप्त किए हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे पी.ए. इनामदार मामले में संविधान पीठ ने "इस तथ्य पर नाराजगी जताई कि यह लोगों द्वारा धन-बल का उपयोग करके लोगों को प्रवेश दिलाने का एक तरीका मात्र है।"
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट शादान फरासत (सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए) ने तर्क दिया कि प्रवेश में NRI की व्यापक परिभाषा का उपयोग हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़ जैसे अन्य राज्यों द्वारा किया जा रहा है तथा पंजाब राज्य अब तक संकीर्ण परिभाषा को लागू कर रहा था।
सीनियर एडवोकेट डीएस पटवालिया और मनिंदर सिंह भी अन्य प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए।
केस टाइटल: पृथ्वीवंश मल्होत्रा बनाम पंजाब राज्य डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 000587/2024