'हत्या नहीं, बल्कि गैर इरादतन हत्या': सुप्रीम कोर्ट ने अचानक झगड़े में पत्नी को जिंदा जलाने वाले पति की सजा कम की

Update: 2024-03-09 04:24 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपनी गर्भवती पत्नी पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगाकर उसकी हत्या करने वाली पति की सजा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 300के तहत हत्या के अपराध को धारा 304 IPC30 के भाग-II के तहत गैर इरादतन हत्या के अपराध में बदल दिया, जो दंडनीय हत्या की श्रेणी में नहीं आता।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा कि जब आरोपी का कृत्य पूर्व नियोजित नहीं, बल्कि आवेश में आकर अचानक हुई लड़ाई और झगड़े का परिणाम है तो आरोपी का ऐसा कृत्य गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आएगा। आईपीसी की धारा 304 के भाग-II के तहत हत्या दंडनीय है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

“प्रत्येक उपलब्ध साक्ष्य से, जो अभियोजन पक्ष द्वारा रखा गया, यह ऐसा मामला है, जहां पति और पत्नी के बीच अचानक लड़ाई हुई। उस समय मृतिका नौ माह के गर्भ से थी और मृतिका पर मिट्टी का तेल डालने के कारण आग लग गई। बाद में वह जल गई और अंततः मृतिका की मृत्यु हो गई। हमारी सुविचारित राय में अपीलकर्ता के हाथों का यह कृत्य आईपीसी की धारा 300 के तहत दिए गए चौथे अपवाद के तहत कवर किया जाएगा, यानी, "गैर इरादतन हत्या हत्या नहीं है, अगर यह आवेश में अचानक झगड़े पर जुनून और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूर या असामान्य तरीके से कार्य किए बिना अचानक लड़ाई में पूर्वचिन्तन के बिना किया जाता है।''

हालांकि, अभियुक्त जानता था कि उसके कृत्य से मृत्यु हो सकती है, न्यायालय ने माना कि यह मृतक की मृत्यु का कारण बनने के बुरे इरादे के बिना किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड किया,

“अपीलकर्ता का कृत्य पूर्व नियोजित नहीं, बल्कि आवेश में आकर अचानक हुई लड़ाई और झगड़े का परिणाम है। इसलिए हम धारा 302 के निष्कर्षों को 304 भाग-2 के निष्कर्षों में परिवर्तित करते हैं, क्योंकि हमारी राय है कि हालांकि अपीलकर्ता को पता था कि इस तरह के कृत्य से मृतक की मृत्यु हो सकती है, लेकिन उसे मारने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए यह ऐसा अपराध है, जो आईपीसी की धारा 304 के भाग-1 के अंतर्गत नहीं बल्कि भाग-2 के अंतर्गत आएगा।”

सुप्रीम कोर्ट ने कालू राम बनाम राजस्थान राज्य के अपने पहले के फैसले का हवाला दिया, जहां भी इसी तरह के तथ्य और मुद्दे सामने आए थे, यानी, आरोपी जो नशे की हालत में अपनी पत्नी पर कुछ गहने देने के लिए दबाव डाल रहा था, जिससे वह अधिक शराब खरीद सके। उसके मना करने पर उसने उस पर मिट्टी का तेल छिड़क दिया और माचिस की तीली जलाकर आग लगा दी। लेकिन फिर उसने उसे बचाने के लिए उस पर पानी डालने की भी कोशिश की।

कालू राम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह पता लगाने के बाद कि आरोपी का अपने कृत्य के कारण मृतक पत्नी को चोट पहुंचाने का इरादा नहीं था, दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 302 से धारा 304 भाग II आईपीसी में बदल दिया।

अपीलकर्ता/अभियुक्त की दलीलों से सहमत होते हुए कि उसके द्वारा किया गया अपराध गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आएगा, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 302 के निष्कर्षों को आईपीसी की धारा 304 भाग II में परिवर्तित करते हुए मुकदमे में दिए गए निष्कर्षों को संशोधित किया।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला,

“इस हद तक ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निष्कर्ष संशोधित माने जाएंगे। हमें यह भी सूचित किया गया है कि अपीलकर्ता पहले ही 10 वर्षों से अधिक समय तक कारावास में रह चुका है। इसलिए उसे तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाएगा, जब तक कि किसी अन्य अपराध में उसकी आवश्यकता न हो।''

केस टाइटल: दत्तात्रेय बनाम महाराष्ट्र राज्य

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