छेड़छाड़ के मामले में राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस द्वारा दावा की गई प्रतिरक्षा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2024-07-04 05:03 GMT

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली राजभवन की पूर्व कर्मचारी ने संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार आपराधिक अभियोजन से राज्यपाल द्वारा दावा की गई प्रतिरक्षा (Immunity) को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 361 राज्यपाल के खिलाफ पुलिस जांच पर रोक नहीं लगाता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राज्यपाल आपराधिक कृत्यों के संबंध में पूर्ण उन्मुक्ति का दावा नहीं कर सकते। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ऐसी उन्मुक्ति देने से उन्हें मुकदमा शुरू करने के लिए राज्यपाल के पद छोड़ने का इंतजार करना पड़ेगा, जो अनुचित है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

अनुच्छेद 361 के अनुसार, राज्यों के राज्यपालों को "अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन" या उसी के अनुसरण में किए गए किसी भी कार्य के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह होने से पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान की जाती है। अनुच्छेद 361 (2) और (3) राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी आपराधिक कार्यवाही और गिरफ्तारी से उन्मुक्ति प्रदान करते हैं।

याचिकाकर्ता ने विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने की भी मांग की, जिसके तहत राज्यपाल अनुच्छेद 361 की भावना के अनुसार संवैधानिक उन्मुक्ति का आनंद ले सकते हैं, न कि पूर्ण सुरक्षा के।

इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने अपने और अपने परिवार के जीवन की सुरक्षा, प्रतिष्ठा के नुकसान के लिए मुआवजा और राज्य पुलिस को मामले की जांच करने के निर्देश देने की प्रार्थना की।

उल्लेखनीय है कि 1 जुलाई को बोस ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को एक पत्र लिखकर कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए कोलकाता पुलिस आयुक्त और उपायुक्त को हटाने की मांग की थी, जो उनकी संवैधानिक उन्मुक्ति का उल्लंघन होगा।

मामले की शुरुआत राजभवन, कोलकाता की पूर्व संविदा कर्मचारी द्वारा राज्यपाल और राज्यपाल के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) सहित तीन अन्य कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर से संबंधित है। बोस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया, जबकि कर्मचारियों पर राजभवन के एक कमरे में पीड़िता को गलत तरीके से रोकने का आरोप लगाया गया। उन्होंने उसका बैग और फोन छीनने का प्रयास किया और राज्यपाल के खिलाफ आवाज उठाने के खिलाफ चेतावनी दी।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 24 मई को राज्यपाल के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) और राजभवन के अन्य कर्मचारियों के खिलाफ पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी।

गौरतलब है कि बोस ने छेड़छाड़ के आरोपों को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर किया।

यह याचिका मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल के खिलाफ कथित तौर पर की गई टिप्पणी के बाद आई, जिसमें उन्होंने कहा कि महिलाओं ने उन्हें बताया है कि राजभवन की पूर्व कर्मचारी द्वारा राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न के हाल ही में लगाए गए आरोपों के कारण वे राजभवन में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं।

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