जघन्य अपराध के आरोपी के फरार होने या सबूत नष्ट करने की संभावना न होने तक गैर-जमानती वारंट न जारी किया जाए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-05-02 05:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को दिए फैसले में नियमित रूप से गैर-जमानती वारंट जारी करने के प्रति आगाह किया। कोर्ट ने कहा कि गैर-जमानती वारंट तब तक जारी नहीं किए जाएंगे, जब तक कि आरोपी पर किसी जघन्य अपराध का आरोप न लगाया गया हो और कानून की प्रक्रिया से बचने या सबूतों से छेड़छाड़/नष्ट करने की संभावना न हो।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा,

“हालांकि गैर-जमानती वारंट जारी करने के लिए दिशानिर्देशों का कोई व्यापक सेट नहीं है, इस अदालत ने कई मौकों पर देखा है कि गैर-जमानती वारंट तब तक जारी नहीं किए जाने चाहिए, जब तक कि आरोपी पर जघन्य अपराध का आरोप न लगाया गया हो और कानून की प्रक्रिया से बचने की संभावना न हो, या सबूतों से छेड़छाड़/नष्ट करें।”

जमानती वारंट जारी होने के बावजूद आरोपी द्वारा अदालत के समक्ष अपनी उपस्थिति नहीं दिखाने के बाद ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी/अपीलकर्ता के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था।

अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 504, 506, 120 बी, 308 और 325 के तहत अपराध वाले आरोप पत्र दायर किए गए।

हाईकोर्ट के निष्कर्षों को उलटते हुए जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि अपीलकर्ता के खिलाफ जारी किए गए गैर-जमानती वारंट टिकाऊ नहीं है और उन्हें रद्द कर दिया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा,

"यह कानून की स्थापित स्थिति है कि गैर-जमानती वारंट नियमित तरीके से जारी नहीं किया जा सकता और किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को तब तक कम नहीं किया जा सकता, जब तक कि जनता और राज्य के व्यापक हित के लिए जरूरी न हो।"

केस टाइटल: शरीफ अहमद और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, वकील अहमद और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सचिव, गृह विभाग एवं अन्य के माध्यम से।

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