अप्रतिबंधित संगठन की बैठकों में शामिल होना UAPA के तहत अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत की पुष्टि की

Update: 2025-08-25 06:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा दायर अपील खारिज की, जिसमें 'अल-हिंद' संगठन से कथित संबंधों के लिए सलीम खान नामक व्यक्ति को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत दी गई ज़मानत को चुनौती दी गई थी।

अदालत ने यह देखते हुए कि 'अल-हिंद' UAPA के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं है। यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति इसके साथ बैठकें करता है तो UAPA के तहत कोई प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,

"आरोपी नंबर 11, सलीम खान की ज़मानत याचिका पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि आरोप-पत्र में लगाए गए आरोप अल-हिंद नामक संगठन से उसके संबंधों से संबंधित हैं, जो निश्चित रूप से UAPA की अनुसूची के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं है। इसलिए यह कहना कि वह उक्त संगठन अल-हिंद और अन्य की बैठकों में भाग ले रहा था, प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं होगा।"

जनवरी, 2020 में माइको लेआउट सब-डिवीज़न के सुद्दागुंटेपल्या पुलिस स्टेशन की सीसीबी पुलिस ने 17 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153ए, 121ए, 120बी, 122, 123, 124ए, 125 और यूए(पी) अधिनियम की धारा 13, 18 और 20 के तहत FIR दर्ज की। बाद में मामला NIA को स्थानांतरित कर दिया गया।

हाईकोर्ट ने सलीम खान को ज़मानत देते हुए अन्य आरोपी मोहम्मद ज़ैद को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था, जिस पर डार्क वेब के ज़रिए ISIS के संचालकों से संपर्क रखने का आरोप है।

सलीम खान के मामले में हाईकोर्ट ने कहा था,

"सिर्फ़ बैठकों में शामिल होना और अल-हिंद समूह का सदस्य बनना, जो कि यूए(पी) अधिनियम की अनुसूची के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं है, साथ ही जिहादी बैठकों में भाग लेना, प्रशिक्षण सामग्री खरीदना और सह-सदस्यों के लिए आश्रय स्थल आयोजित करना यूए(पी) अधिनियम की धारा 2(के) या धारा 2(एम) के प्रावधानों के तहत अपराध नहीं है।"

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें सलीम खान को ज़मानत दी गई और मोहम्मद ज़ैद को ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि यह आदेश सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करने के बाद पारित किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए मुकदमे की सुनवाई में तेज़ी लाने का भी निर्देश दिया कि अभियुक्तों को लंबे समय तक विचाराधीन कैदियों के रूप में जेल में सड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मुकदमे को पूरा करने के लिए दो साल की समय सीमा तय की गई।

Case : Union of India v. Saleem Khan

Tags:    

Similar News