'धारा 304 ए और 338 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि के लिए कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले में सजा में बदलाव किया

Update: 2024-09-06 04:24 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को रिहा करने का आदेश दिया, जिस पर अपनी लापरवाही और तेज गति से गाड़ी चलाने के कारण मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे व्यक्ति की मौत का आरोप है। उसने उसकी सजा की अवधि को घटाकर हिरासत के दौरान पहले से ही भुगती गई अवधि तक सीमित कर दिया।

यह देखते हुए कि आईपीसी की धारा 304 ए और 338 के तहत सजा की कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने एलएल 2021 एससी 279 में दर्ज सुरेंद्रन बनाम पुलिस उपनिरीक्षक के मामले पर भरोसा करते हुए सजा को केवल जुर्माने में बदलने का आदेश दिया।

वर्तमान मामले में अपीलकर्ता को 10.05.2024 को गिरफ्तार किया गया और तब से वह लगभग 117 दिनों तक हिरासत में था।

अपीलकर्ता को सड़क दुर्घटना के संबंध में भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 279, 337, 338 और 304 (ए) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया। आरोपी के खिलाफ आरोप यह था कि उसने मिनी लॉरी को बहुत ही लापरवाही से चलाया और मिनी लॉरी ने विपरीत दिशा से आ रही मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी। पीछे बैठा सवार (मृतक) टक्कर से नीचे गिर गया, उसे गंभीर चोटें आईं और उसकी मौत हो गई।

अपीलकर्ता के खिलाफ मुख्य आरोप मिनी लॉरी को लापरवाही से चलाने के कारण मौत का कारण बनना है, जिसके परिणामस्वरूप मोटरसाइकिल के पीछे बैठे व्यक्ति की मौत हो गई। आईपीसी की धारा 304 (ए) और धारा 338 के तहत दोषसिद्धि के लिए कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है, लेकिन सजा की अवधि 2 साल तक बढ़ाई जा सकती है। सजा को बिना किसी कारावास की अवधि के जुर्माने तक सीमित किया जा सकता है। आईपीसी की धारा 279 और 337 के तहत अपराध के लिए अधिकतम सजा 6 महीने है। सजा केवल जुर्माना भी हो सकती है।

परिस्थितियों और भौतिक साक्ष्यों को देखने के बाद हाईकोर्ट ने दोषी करार दिया और अपीलकर्ता को 6 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई। पीड़ित के परिवार को मुआवजा देने की पेशकश करने वाले उसके वकील द्वारा दिए गए आश्वासन के आधार पर आरोपी को 2.5 लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए भी कहा गया।

दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के दोषी फैसले को संशोधित किया और सजा की अवधि को हिरासत में रहते हुए उसके द्वारा पहले ही भुगती गई सजा तक कम कर दिया। साथ ही अदालत ने अपीलकर्ता की इस दलील को स्वीकार करते हुए मृतक के परिवार को उसके द्वारा देय मुआवजे की राशि को 2.5 लाख रुपये से घटाकर 50,000 रुपये कर दिया कि वह गरीब व्यक्ति है और गंभीर मेडिकल समस्याओं से पीड़ित है।

न्यायालय ने आदेश दिया,

"उपर्युक्त के अनुसरण में तथा सजा में संशोधन करते हुए अपीलकर्ता, जो वर्तमान में तिरुवनंतपुरम के केंद्रीय कारागार एवं सुधार गृह में बंद है, को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया जाता है। इस आदेश के साथ अपील का निपटारा किया जाता है।"

केस टाइटल: जॉर्ज बनाम केरल राज्य

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