राज्य बार काउंसिल का मुस्लिम सदस्य बार काउंसिल में कार्यकाल समाप्त होने के बाद वक्फ बोर्ड में नहीं रह सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य बार काउंसिल का मुस्लिम सदस्य होने के कारण राज्य वक्फ बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया व्यक्ति बार काउंसिल का सदस्य न रहने के बाद राज्य वक्फ बोर्ड का सदस्य नहीं रह सकता।
वक्फ एक्ट की धारा 14 (2025 संशोधन से पहले) के अनुसार, किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की बार काउंसिल का मुस्लिम सदस्य उक्त राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के वक्फ बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया जा सकता है।
कोर्ट के समक्ष प्रश्न यह था कि "क्या राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की बार काउंसिल का मुस्लिम सदस्य, जो वक्फ एक्ट, 1995 की धारा 14 के तहत गठित वक्फ बोर्ड का सदस्य निर्वाचित हुआ है, बार काउंसिल में अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी उक्त पद पर बना रह सकता है।"
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ मणिपुर हाईकोर्ट के नवंबर, 2023 में दिए गए निर्णय को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य बार काउंसिल में मुस्लिम सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी वह राज्य वक्फ बोर्ड में अपना पद जारी रख सकता है।
फरवरी, 2023 में मणिपुर सरकार ने प्रतिवादी नंबर 3 की जगह अपीलकर्ता (बार काउंसिल सदस्य) को राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की, जिसकी बार काउंसिल में सदस्यता समाप्त हो गई थी। प्रतिवादी नंबर 3 ने अपीलकर्ता की नियुक्ति को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। हालांकि एकल पीठ ने उनकी रिट याचिका खारिज कर दी, लेकिन खंडपीठ ने इसे अनुमति दे दी।
हाईकोर्ट का तर्क एक्ट की धारा 14 के स्पष्टीकरण II पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि मुस्लिम सांसद या विधायक का सांसद/विधायक के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य नहीं रहेंगे। हाईकोर्ट के अनुसार, चूंकि स्पष्टीकरण में केवल यह कहा गया कि विधानमंडल में अपना कार्यकाल समाप्त होने पर कोई सांसद/विधायक वक्फ बोर्ड का सदस्य नहीं रहेगा, इसलिए बार काउंसिल के सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने से वक्फ बोर्ड में उनकी सदस्यता प्रभावित नहीं होगी।
आसिफ पुत्र शौकत कुरैशी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय का भी संदर्भ दिया गया, जहां न्यायालय ने बार काउंसिल के सदस्य को महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड, औरंगाबाद के सदस्य के रूप में अपना कार्यकाल जारी रखने की अनुमति दी थी, भले ही वह अब परिषद का सदस्य न हो।
हाईकोर्ट ने उक्त तर्क खारिज कर दिया और यह भी माना कि बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय गलत था।
न्यायालय ने यह भी कहा कि धारा 14 का स्पष्टीकरण II, मुख्य मूल प्रावधान की व्याख्या का आधार नहीं बन सकता।
न्यायालय ने प्रतिवादियों का तर्क खारिज कर दिया और कहा कि अधिनियम की धारा 14 एक अनिवार्य प्रावधान है और राज्य वक्फ बोर्डों की संरचना और पात्रता की योजना निर्धारित करता है। न्यायालय ने माना कि वक्फ बोर्ड में सदस्यता की पात्रता संसद, विधान सभा या बार काउंसिल की सदस्यता थी।
कहा गया,
"संसद, या राज्य विधानसभा या बार काउंसिल में ऐसी सदस्यता के बिना बोर्ड में उनकी सदस्यता का मूल आधार ही समाप्त हो जाता है। 1995 के अधिनियम की धारा 14(1)(बी) के स्पष्टीकरण II की प्रयोज्यता को बार काउंसिल के सदस्य पर लागू न करने का कोई संतोषजनक औचित्य नहीं है। ऐसा बहिष्करण क़ानून के पीछे विधायी मंशा के विपरीत होगा।"
खंडपीठ ने आगे कहा कि कानून के मूल प्रावधान के लिए प्रदान किया गया स्पष्टीकरण मूल प्रावधान की व्याख्या का एकमात्र आधार नहीं बन सकता।
जस्टिस सुंदरेश द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया,
"विधायी प्रावधान की व्याख्या करने के लिए जिस पर मुख्य रूप से विचार किया जाना चाहिए, वह उसका मूल भाग है। स्पष्टीकरण केवल स्पष्टीकरण देने का कार्य करता है। दूसरे शब्दों में किसी प्रावधान के मूल भाग को केवल स्पष्टीकरण के दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता है।"
न्यायालय ने कहा,
"एक स्पष्टीकरण, जो कि कुछ श्रेणियों के संबंध में केवल स्पष्टीकरण की प्रकृति का है, उसको इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता, जो प्रावधान के मूल भाग का उल्लंघन करता हो।"
न्यायालय ने यह भी माना कि बार काउंसिल का कोई पूर्व सदस्य वक्फ बोर्ड की सदस्यता के लिए तभी पात्र होगा, जब बार काउंसिल में कोई मुस्लिम सदस्य न हो और कोई मुस्लिम सीनियर एडवोकेट उपलब्ध न हो। इस प्रकार, यह कहना स्वयंसिद्ध है कि बार काउंसिल से बोर्ड का कोई मौजूदा मुस्लिम सदस्य बार काउंसिल के सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के पूरा होने पर बोर्ड का सदस्य नहीं रह जाएगा, जब बार काउंसिल के भीतर से उनके स्थान पर कोई अन्य मुस्लिम सदस्य उपलब्ध हो।
इस प्रकार, पूरे प्रावधान को पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि विधानमंडल की ओर से अधिनियम 1995 की धारा 14(1)(बी) के स्पष्टीकरण II की प्रयोज्यता को बार काउंसिल से निर्वाचित बोर्ड के मुस्लिम सदस्यों पर लागू करने से बचने का कोई सचेत इरादा नहीं है।"
उपरोक्त कानूनी विश्लेषण के आधार पर न्यायालय ने अपीलकर्ता को नियुक्त करने के राज्य सरकार का निर्णय बरकरार रखा:
"इस मामले में मणिपुर राज्य ने अपीलकर्ता की सदस्यता स्वीकार करना उचित समझा है, जो कि बोर्ड में बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य के रूप में सेवा कर रहा है। मणिपुर बार काउंसिल द्वारा राजपत्र अधिसूचना जारी की गई, जिसमें कहा गया कि अपीलकर्ता को बार काउंसिल के सदस्य के रूप में चुना गया था। इसलिए इस प्रकार, बार काउंसिल का सदस्य उपलब्ध था, जिसे बाद में अधिनियम 1995 की धारा 14(1)(बी)(iii) के अनुसार बोर्ड के सदस्य के रूप में चुना गया था। प्रतिवादी नंबर 3, जो अब बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य के उक्त पद पर नहीं है, उसको यह तर्क देने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि बार काउंसिल का सदस्य न रहने के बाद भी वह बोर्ड के सदस्य के रूप में बने रहने का हकदार होगा।"
हाईकोर्ट का निर्णय अलग रखते हुए खंडपीठ ने यह भी माना कि मिस्टर आसिफ मामले में लिया गया निर्णय अच्छा निर्णय नहीं है।
केस टाइटल: एमडी फिरोज अहमद खालिद बनाम मणिपुर राज्य और अन्य | विशेष अपील अनुमति (सिविल) नंबर 2138/2024