केवल फरार होना दोष का सबूत नहीं, साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रासंगिक आचरण है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध करने के बाद केवल फरार होना अपने आप में दोष साबित नहीं करता, लेकिन यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रासंगिक तथ्य है, क्योंकि यह आरोपी के आचरण को दर्शाता है और दोषी मानसिकता का संकेत दे सकता है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने यह देखते हुए अपीलकर्ता की हत्या के लिए दोषसिद्धि बरकरार रखी कि घटनास्थल से फरार होने से कुछ समय पहले उसे मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था। इस फरारी को स्पष्ट करने में उसकी विफलता साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रासंगिक तथ्य है, जिसकी पुष्टि अन्य सहायक साक्ष्यों से होती है।
अदालत ने मटरू @ गिरीश चंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (1971) 2 एससीसी 75 का संदर्भ देते हुए टिप्पणी की,
"यह बात आम है कि केवल फरार होना ही दोषी मानसिकता नहीं है, क्योंकि एक निर्दोष व्यक्ति भी घबरा सकता है। आत्मरक्षा की प्रवृत्ति के रूप में गलत तरीके से शामिल होने का संदेह होने पर पुलिस से बचने की कोशिश कर सकता है। लेकिन फरार होने का कृत्य निश्चित रूप से अन्य साक्ष्यों के साथ विचार किए जाने वाला प्रासंगिक साक्ष्य है और साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 8 के तहत एक आचरण है, जो उसके दोषी मानसिकता की ओर इशारा करता है। संदेह की सुई इस कृत्य से मजबूत होती है।"
अपीलकर्ता (आरोपी) को आखिरी बार हत्या की रात (10.07.2006) मृतक के साथ देखा गया था और 11.07.2006 से 22.07.2006 को उसकी गिरफ्तारी तक फरार रहा। अदालत ने मृतक के परिवार को अपने ठिकाने के बारे में झूठी जानकारी देने और अपने दोस्त को अपने ठिकाने के बारे में झूठ बोलने के लिए गुमराह करने के उसके टालमटोल वाले व्यवहार को नोट किया।
हत्या के हथियार (बंदूक) की बरामदगी और अपराध से इसे जोड़ने वाले फोरेंसिक साक्ष्य के साथ-साथ इस आचरण ने अपराध की ओर इशारा करने वाली परिस्थितियों की एक श्रृंखला बनाई।
अदालत ने नोट किया कि यद्यपि अकेले फरार होना अपराध साबित करने के लिए अपर्याप्त है, लेकिन यह तब प्रासंगिक साक्ष्य बन जाता है, जब आरोपी अपराध स्थल से अपने फरार होने के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं देता।
चूंकि अपीलकर्ता भागने के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहा और उसके फरार होने की पुष्टि अन्य आपत्तिजनक साक्ष्य जैसे कि अंतिम बार देखा जाना, मकसद, हथियारों की बरामदगी आदि से हुई, इसलिए अदालत ने पाया कि ऐसे उदाहरण अभियोजन पक्ष के मामले को लाभ पहुंचाते हैं।
तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई और दोषसिद्धि बरकरार रखी गई।
Case Title: CHETAN VERSUS THE STATE OF KARNATAKA