मीडिया संगठनों ने विज्ञापनों के लिए स्व-घोषणा पत्र अनिवार्य किए जाने पर चिंता जताई; सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर चर्चा करने को कहा
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में पहले जारी किए गए निर्देश के संदर्भ में विज्ञापन एजेंसियों पर प्रतिबंध लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका उद्देश्य किसी को परेशान करना नहीं है। बल्कि, इसका ध्यान विशेष क्षेत्रों और पहलुओं पर है और यदि कुछ गलत व्याख्या की गई तो उसे स्पष्ट किया जाएगा।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की, जिसने इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ रेडियो ऑपरेटर्स फॉर इंडिया, ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी आदि की ओर से दायर कई इंटरलोक्यूटरी आवेदनों (आईए) पर नोटिस जारी किया, जिसमें विज्ञापन उद्योग द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।
जस्टिस कोहली ने कहा,
"हमारा यह भी मानना है कि उद्योग को किसी भी तरह से नुकसान नहीं होना चाहिए। इसका उद्देश्य किसी पर बोझ डालना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि व्यवस्था हो और वह चालू हो और उचित तरीके से लागू हो।"
खंडपीठ ने आदेश में कहा,
"हमारा यह भी मानना है कि उद्योग (विज्ञापन उद्योग) को किसी भी तरह से नुकसान नहीं होना चाहिए। इस न्यायालय का ध्यान पहले ही पिछले आदेशों में उजागर किया जा चुका है। इसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है। मंत्रालय को विचारों पर मंथन जारी रखने और इस दिशा में आगे की बैठकें करने तथा अपनी सिफारिशें पेश करते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है।"
संदर्भ के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए न्यायालय द्वारा 7 मई के आदेश में जारी निर्देश के अनुसरण में आवेदन दायर किए गए।
यह इस प्रकार था:
"अब से विज्ञापन छपने/प्रसारित होने/प्रदर्शित होने से पहले विज्ञापनदाता/विज्ञापन एजेंसी द्वारा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम 7 में उल्लिखित लाइनों पर स्व-घोषणा प्रस्तुत की जाएगी। स्व-घोषणा अपलोड करने का प्रमाण विज्ञापनदाताओं द्वारा संबंधित प्रसारक/प्रिंटर/प्रकाशक/टी.वी. चैनल/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को रिकॉर्ड के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। उपरोक्त निर्देशानुसार स्व-घोषणा अपलोड किए बिना संबंधित चैनलों और/या प्रिंट मीडिया/इंटरनेट पर कोई भी विज्ञापन चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"
आदेश के अनुसार, निर्देश को संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत न्यायालय द्वारा घोषित कानून माना जाना था।
सुनवाई के दौरान, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (आवेदक-इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया का प्रतिनिधित्व करते हुए) ने प्रस्तुत किया कि जारी किए गए निर्देश "ऑनलाइन उद्योग पर बहुत प्रभाव डाल रहे हैं"। उन्होंने अनुरोध किया कि केंद्र सरकार इस मामले पर जल्द से जल्द गौर करे, जिससे उद्योग को नुकसान न हो, "जो कि आदेश का उद्देश्य भी नहीं था"।
जस्टिस कोहली ने सिब्बल को जवाब देते हुए कहा,
"उच्चतम स्तर पर हम नहीं चाहते कि अनुमोदन की परतें हों...जो कुछ भी छोटा और सरल किया जाना है, उसे किया जाना चाहिए।"
इस मोड़ पर सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे (आवेदक-एसोसिएशन ऑफ रेडियो ऑपरेटर्स का प्रतिनिधित्व करते हुए) को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि ऐसे विज्ञापन हैं, जो केवल 10 सेकंड की अवधि के हैं। ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अरविंद पी दातार ने भी इसी तरह की चिंता जताई।
इस पर ध्यान देते हुए जस्टिस कोहली ने कहा,
"हम समझते हैं। उनमें से कुछ वॉक-इन विज्ञापन हैं। हमने इसे देखा है। इसका उद्देश्य किसी को परेशान करना नहीं है। इसका उद्देश्य केवल विशेष क्षेत्रों और विशेष पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना है। जो कुछ भी बाहरी है और किसी तरह से अन्यथा व्याख्या की जा रही है, उसे स्पष्ट किया जाना चाहिए। लेकिन हमें इस पर स्पष्टता होनी चाहिए।"
न्यायाधीश ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज (संघ की ओर से उपस्थित) से भी पूछा कि क्या सरकार ने उपरोक्त पहलुओं पर विचार करने के लिए कोई बैठक बुलाई। एएसजी ने बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पहले ही विभिन्न हितधारकों, जिनमें कुछ आवेदक भी शामिल हैं, उसके साथ उच्च स्तरीय बैठकें की हैं, जिनका उद्देश्य उनके सामने आने वाली समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान करना है।
एएसजी की बात सुनकर खंडपीठ ने निर्देश दिया कि मंत्रालय प्रयास जारी रखे और आगे भी बैठकें करे, जिसके बाद सिफारिशें देने वाला हलफनामा दाखिल किया जाएगा।
आगे कहा गया,
"ऐसी बैठकें आगे भी की जाएंगी। सभी हस्तक्षेपकर्ताओं और अन्य जिन्हें उपयुक्त समझा जाएगा, उन्हें उक्त बैठकों में आमंत्रित किया जाएगा, जिससे मुद्दों को सुव्यवस्थित किया जा सके और हस्तक्षेपकर्ताओं द्वारा सामना की जा रही कठिनाइयों और उन्हें हल करने के तरीके को इंगित किया जा सके।"
पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के सुझाव पर वकील शशांक मिश्रा, प्रभास और के परमेश्वर को मध्यस्थ/हस्तक्षेप आवेदनों से निपटने में अदालत की सहायता करने के लिए एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया गया।
कहा गया,
"[तीनों] वकील आपस में समन्वय करेंगे और हस्तक्षेप के लिए सभी आवेदनों की सूची तैयार करेंगे, जिसमें की गई प्रार्थनाएं (और मांगी गई अंतरिम राहत) शामिल होंगी, जो न्यायालय के तत्काल संदर्भ के लिए सारणीबद्ध रूप में होंगी।"
केस टाइटल: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 645/2022