'शायद परिस्थितियों में बदलाव के कारण मन बदल गया': NDTV के खिलाफ याचिका पर स्थगन की ED की मांग पर सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-08-05 13:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) को न्यू दिल्ली टेलीविजन (NDTV) के खिलाफ अपनी याचिका पर विचार करने के लिए अतिरिक्त समय दिया और मामले की सुनवाई 12 अगस्त, 2024 के लिए निर्धारित की। कोर्ट ने इसे ED के लिए "अंतिम मौका" बताया।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ NDTV को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के समक्ष विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के कथित उल्लंघन के लिए समझौता कार्यवाही करने की अनुमति देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ ईडी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

ED की ओर से पेश हुए वकील द्वारा समय मांगे जाने और मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने का अनुरोध करने के बाद जस्टिस ओक ने टिप्पणी की कि बदली हुई परिस्थितियों के कारण ईडी के रुख में बदलाव हो सकता है।

उन्होंने टिप्पणी की,

"शायद अब परिस्थितियों में बदलाव के कारण मन बदल गया।"

18 दिसंबर, 2020 को इसकी अंतिम सुनवाई के लगभग साढ़े तीन साल बाद इस साल मई में इस मामले की सुनवाई हुई। तब से ED के कहने पर इसे तीन बार स्थगित किया जा चुका है। NDTV की स्थापना प्रणय रॉय और राधिका रॉय ने 1988 में की थी और यह भारत के प्रमुख समाचार प्रसारकों में से एक के रूप में उभरा। अगस्त 2022 में अडानी ग्रुप ने NDTV में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करने के अपने इरादे की घोषणा की।

अडानी ग्रुप का अधिग्रहण इसकी सहायक कंपनी विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (वीसीपीएल) के माध्यम से किया गया। अडानी ग्रुप ने NDTV पर प्रभावी रूप से नियंत्रण हासिल कर लिया, मार्च 2023 तक NDTV में 64 प्रतिशत से अधिक का स्वामित्व उसके पास था। मामले की पृष्ठभूमि NDTV को कथित FEMA उल्लंघनों के लिए ED द्वारा शुरू की गई न्यायिक कार्यवाही का सामना करना पड़ा और उसने समझौता करने का फैसला किया।

RBI को प्रस्तुत किए गए समझौता आवेदन वापस कर दिए गए। परिणामस्वरूप, NDTV ने RBI और ED की इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की, जिसने न्यायनिर्णयन कार्यवाही को आगे बढ़ाया। रिट याचिका का निपटारा करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि RBI के समक्ष लंबित समझौता कार्यवाही कानून के अनुसार सख्ती से जारी रहनी चाहिए।

हाईकोर्ट ने अपने विवादित आदेश में RBI को NDTV द्वारा दायर समझौता आवेदनों पर विचार करने का निर्देश दिया।

जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस भारती डांगरे की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने NDTV का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट जनक द्वारकादास की दलीलों से निपटते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी कीं। द्वारकादास ने तर्क दिया कि RBI, ED और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसे उच्च पदाधिकारियों की वैधानिक स्थिति और स्थिति को कम करके आंका जा रहा है और समझौता किया जा रहा है।

हालांकि, हाईकोर्ट सीनियर वकील की दलीलों से असहमत था, लेकिन उसने इन संस्थानों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के बारे में NDTV के संदेह की चिंताजनक प्रकृति पर ध्यान दिया। खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की मान्यताओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए और न ही अदालत में आवाज उठाई जानी चाहिए, क्योंकि वे इन संस्थाओं की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को कमज़ोर करते हैं। हाईकोर्ट ने इस तरह की दलीलें दर्ज करने में अपनी असहजता व्यक्त की और उम्मीद जताई कि सभी संबंधित पक्ष उनकी चिंता की गहराई को समझेंगे।

हाईकोर्ट ने इन संस्थाओं में जनता का भरोसा और विश्वास बनाए रखने के महत्व पर भी ज़ोर दिया। खंडपीठ ने टिप्पणी की कि इन संस्थाओं के प्रभारी और सत्ता में बैठे लोगों को यह समझना चाहिए कि अगर राजनीतिक हस्तक्षेप से इन संस्थाओं की नींव हिलती है तो कुछ हासिल नहीं होता। इसने ज़ोर दिया कि राजनीतिक दलों को चाहे वे सत्ता में हों या विपक्ष में, यह पहचानना चाहिए कि रक्षा बलों, पुलिस और न्यायपालिका की तरह इन संस्थाओं को भी जनता का भरोसा और विश्वास बनाए रखना चाहिए।

निर्णय में प्रवर्तन निदेशालय की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया, जो FEMA और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) जैसे कड़े कानूनों को लागू करता है। हाईकोर्ट ने कहा कि ये संस्थाएं भारत के विदेशी मुद्रा संसाधनों की सुरक्षा, संतुलित भुगतान प्रबंधन सुनिश्चित करने और संवैधानिक ढांचे की रक्षा करने के लिए ज़िम्मेदार हैं।

122 पन्नों के निर्णय का समापन करते हुए हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ये संस्थाएं लोकतंत्र के स्तंभ हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि जितनी जल्दी सभी को कानूनी अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा बनाए रखने में इन संस्थानों के महत्व का एहसास होगा, उतना ही बेहतर होगा। हाईकोर्ट ने उम्मीद जताई कि उसे भविष्य में ऐसी टिप्पणियां नहीं करनी पड़ेंगी और सभी पक्षों से इन संस्थानों पर अनावश्यक हमले और अनावश्यक आलोचना से बचने का आग्रह किया।

केस टाइटल- प्रवर्तन निदेशालय बनाम नई दिल्ली टेलीविजन लिमिटेड

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