पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण का अधिकार पति की संपत्ति पर SARFAESI/IBC के तहत लेनदारों के दावों पर हावी: सुप्रीम कोर्ट
वसूली कार्यवाही के तहत लेनदारों के अधिकारों पर एक व्यक्ति की पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के अधिकार को वरीयता देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि भरण-पोषण का अधिकार मौलिक अधिकार के बराबर है। इसका व्यावसायिक कानूनों के तहत लेनदारों आदि के वैधानिक अधिकारों पर एक अधिभावी प्रभाव होगा।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने कहा,
"भरण-पोषण का अधिकार जीविका के अधिकार के अनुरूप है। यह अधिकार गरिमा और गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का एक उपसमूह है, जो बदले में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से निकलता है। एक तरह से भरण-पोषण का अधिकार मौलिक अधिकार के बराबर होने के कारण वित्तीय ऋणदाताओं, सुरक्षित ऋणदाताओं, परिचालन ऋणदाताओं या वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002, दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 या इसी तरह के कानूनों के अंतर्गत आने वाले किसी अन्य दावेदार को दिए गए वैधानिक अधिकारों से बेहतर होगा और उन पर अधिक प्रभाव डालेगा।"
न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रतिवादियों (पत्नी और बच्चों) को देय भरण-पोषण के बकाया का प्रभार अपीलकर्ता-पति की आस्तियों पर किसी भी वसूली कार्यवाही के तहत सुरक्षित ऋणदाता या समान अधिकार धारकों के अधिकारों से ऊपर होगा। इसमें कहा गया कि जहां भी ऐसी कार्यवाही लंबित है, संबंधित फोरम यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिवादियों को भरण-पोषण की बकाया राशि तुरंत जारी की जाए और प्रतिवादियों के भरण-पोषण के अधिकार का विरोध करने वाले किसी भी लेनदार आदि की आपत्ति/दावे पर विचार न किया जाए।
इसके अलावा, आदेश में उल्लेख किया गया कि यदि अपीलकर्ता भरण-पोषण की बकाया राशि का भुगतान करने में विफल रहता है तो फैमिली कोर्ट उसके खिलाफ बलपूर्वक कार्रवाई करेगा। यदि आवश्यक हो तो भरण-पोषण की बकाया राशि की वसूली के उद्देश्य से उसकी अचल संपत्तियों की नीलामी भी की जा सकती है।
संक्षेप में, फैमिली कोर्ट ने शुरू में प्रतिवादी-पत्नी को 6,000/- रुपये प्रति माह और प्रत्येक बच्चे को 3,000/- रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। अपील में गुजरात हाईकोर्ट ने राशियों को बढ़ाते हुए प्रतिवादी-पत्नी को 1 लाख रुपये प्रति माह और दोनों बच्चों को 50,000/- रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों के दावों को स्वीकार कर लिया और यह देखते हुए राशि बढ़ा दी कि अपीलकर्ता एक व्यवसायी है, जो एक हीरा कारखाने का मालिक है। इसके अलावा, उसने उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला क्योंकि वह उस आशय के निर्देश के बावजूद आयकर दस्तावेज प्रस्तुत करने में विफल रहा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने अपना आयकर रिटर्न प्रस्तुत किया और हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दर पर भरण-पोषण का भुगतान करने में असमर्थता का दावा किया। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम निर्देश जारी किए, जिसमें भरण-पोषण की राशि को इस प्रकार कम किया गया: प्रतिवादी-पत्नी को हाईकोर्ट के आदेश की तिथि से 50,000/- रुपये प्रति माह और बच्चों को 25,000/- रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाना था।
समय के साथ अपीलकर्ता ने दावा किया कि व्यवसाय में कुछ असफलताओं के कारण वह हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दर पर भरण-पोषण का भुगतान करने की स्थिति में नहीं था।
यह देखते हुए कि हाईकोर्ट ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण का आदेश दिया और अपीलकर्ता का व्यवसायिक घाटे का दावा तथ्य का प्रश्न था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब तक अंतरिम भरण-पोषण (जैसा कि 2022 में भुगतान करने का निर्देश दिया गया) प्रतिवादियों के भरण-पोषण के लिए "न्यायसंगत और उचित" होगा।
आदेश में कहा गया,
"हम इन अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट के विवादित निर्णय को इस सीमा तक संशोधित करते हैं कि प्रतिवादी-पत्नी हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश की तिथि से 50,000/- रुपये प्रति माह की दर से भरण-पोषण की हकदार मानी जाती है। इसी प्रकार, दोनों बच्चों को भी हाईकोर्ट के आदेश की तिथि से प्रत्येक को 25,000/- रुपये प्रति माह की दर से भरण-पोषण का हकदार माना जाता है। हालांकि, वे हाईकोर्ट द्वारा उक्त आदेश पारित किए जाने की तिथि तक हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उच्च दर पर भरण-पोषण के बकाया के हकदार होंगे।"
अपीलकर्ता को 3 महीने के भीतर बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: अपूर्वा @ अपूर्वो भुवनबाबू मंडल बनाम डॉली और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 5148-5149 2024