'वकीलों की हड़ताल घोर अवमानना': सुप्रीम कोर्ट ने फैजाबाद बार एसोसिएशन को काम से विरत रहने के प्रस्तावों पर फटकार लगाई
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिला एसोसिएशन द्वारा कथित रूप से हड़ताल करने और न्यायिक कार्य से विरत रहने पर गंभीर नाराजगी व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कल इसके पदाधिकारियों से हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिसमें यह वचन दिया गया हो कि वे भविष्य में कभी भी ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं करेंगे।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत एसोसिएशन के मामलों को संभालने और यह सुनिश्चित करने के लिए एल्डर्स कमेटी का गठन किया गया कि दिसंबर 2024 तक इसके गवर्निंग काउंसिल के चुनाव हो जाएं।
बयानों को सुनने के बाद न्यायालय ने आदेश दिया:
"याचिकाकर्ता - बार एसोसिएशन के प्रत्येक पदाधिकारी जिला जज, हाईकोर्ट और इस न्यायालय के समक्ष हलफनामे के माध्यम से वचनबद्धता दायर करेंगे कि वे कभी भी काम से विरत रहने का कोई प्रस्ताव पारित नहीं करेंगे। यदि बार एसोसिएशन के सदस्यों की कोई शिकायत है तो वे अपनी शिकायतों के निवारण के लिए जिला जज या यदि आवश्यक हो तो हाईकोर्ट के प्रशासनिक जज/पोर्टफोलियो जज से संपर्क करेंगे"।
न्यायालय ने मौखिक रूप से बार एसोसिएशन के सभी सदस्यों के हलफनामे मांगे, जिससे वह उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सके और उनके लाइसेंस निलंबित कर सके। हालांकि, सीनियर एडवोकेट राकेश कुमार खन्ना के अनुरोध पर (याचिकाकर्ता-एसोसिएशन की ओर से), इस स्तर पर आदेश का दायरा पदाधिकारियों तक सीमित कर दिया गया।
यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता-एसोसिएशन पर "घोर अवमानना" का आरोप लगाया गया, जिस पर हाईकोर्ट ने दृढ़ निष्कर्ष निकाला। ऐसे में उसे पहले खुद को इससे मुक्त करना चाहिए।
इस मामले में यह दृष्टिकोण इसलिए लिया गया, क्योंकि फैजाबाद में संबंधित वकीलों ने नवंबर 2023 से अप्रैल 2024 तक कुल 134 कार्य दिवसों में से 66 दिनों के लिए न्यायिक कार्य से विरत रहने की बात कही थी।
उसी का हवाला देते हुए जस्टिस कांत ने खन्ना से पूछा,
"क्या आपको लगता है कि उन्हें बार काउंसिल का लाइसेंस रखने की अनुमति दी जानी चाहिए?"
बचाव में सीनियर वकील ने निर्देश पर कहा कि अयोध्या मंदिर आंदोलन के कारण अदालतों को बंद करने के लिए जिला सर्कुलर था। हालांकि, जस्टिस कांत ने तुरंत बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष ऐसी कोई याचिका नहीं ली गई थी।
इस बात पर जोर देते हुए कि संबंधित वकील व्यवस्था का हिस्सा हैं, जज ने कहा,
"उन्हें एहसास होगा कि हम जानते हैं कि उनसे कैसे निपटना है। यह बहुत गंभीर मामला है। व्यवस्था का यह मजाक हम नहीं बनने देंगे। हमें जो भी कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी, हम करेंगे। हम संकोच नहीं करेंगे, हम अनिच्छुक नहीं हैं"।
इसके अलावा, जस्टिस कांत ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा आदेश सुरक्षित रखे जाने के बाद भी याचिकाकर्ता-एसोसिएशन की पिछली गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष और महासचिव ने न्यायिक कार्य से विरत रहने के लिए प्रस्ताव पारित किए और ऐसे प्रस्ताव निर्णय की घोषणा की तिथि पर भी पारित किए गए।
जज ने टिप्पणी की,
"बहुत ही चिंताजनक स्थिति है! क्या वे हाईकोर्ट को धमकाने की कोशिश कर रहे हैं? हम उनके खिलाफ बहुत कठोर कार्रवाई करने के लिए इच्छुक हैं, हम उन्हें चेतावनी दे रहे हैं। हर जिला बार एसोसिएशन इस तरह की हरकतों में लिप्त है।"
जस्टिस कांत ने यह भी कहा कि न्यायालय इस याचिका (या संबंधित वकीलों द्वारा दायर किसी अन्य याचिका) पर तब तक सुनवाई नहीं करेगा, जब तक कि वे जिला जज के समक्ष हलफनामा दाखिल नहीं कर देते कि वे काम से विरत रहने के किसी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे।
दूसरी ओर, खन्ना ने जिला जज की रिपोर्ट वाले हलफनामे को रिकॉर्ड पर रखने के लिए समय मांगा कि हड़ताल नहीं हुई है।
हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।
जस्टिस कांत ने कहा,
"हम रोक नहीं लगाएंगे। एल्डर्स कमेटी से पहले ही कहा जा चुका है, चुनाव दिसंबर से पहले होने हैं। आप जाकर चुनाव में भाग लें।"
जब खन्ना ने इस बात पर जोर दिया कि एल्डर्स कमेटी के गठन के बाद भी बार एसोसिएशन जारी रहेगी तो जज ने कहा कि अन्य पहलुओं पर तभी विचार किया जाएगा, जब न्यायालय याचिकाकर्ता के आचरण से संतुष्ट हो जाएगा।
अंतरिम आदेश को भी इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि इससे न्यायिक संस्थाओं का मनोबल गिरेगा।
जस्टिस कांत ने कहा,
"इससे जिला न्यायपालिका का मनोबल गिरेगा, इससे हाईकोर्ट का भी मनोबल गिरेगा, जिसने बहुत ही निष्पक्ष और उचित रूप से साहसिक आदेश पारित करने में बहुत अधिक [तनाव] उठाया। हाईकोर्ट बहुत कठोर कार्रवाई कर सकता था, लेकिन उसने बहुत संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा। अन्यथा जो आचरण प्रदर्शित किया गया। वह बहुत गंभीर है।"
विदा होने से पहले न्यायालय ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि यूपी बार काउंसिल ने मामले में कुछ नहीं किया। इसके अतिरिक्त, जस्टिस कांत ने उन शिकायतों को रेखांकित किया, जिनका सामना ग्रामीण क्षेत्रों से मुकदमेबाजी के लिए आने वाले लोगों को करना पड़ सकता है, जब उन्हें पता चलता है कि उनके वकील किसी प्रस्ताव के तहत काम से विरत हैं।
याचिकाकर्ता-एसोसिएशन को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन से अलग करते हुए जस्टिस कांत ने यह भी टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ही एकमात्र ऐसी बार है, जिसमें आशा की किरण है, जिसने कभी ऐसा कुछ नहीं किया या उसका समर्थन नहीं किया।
केस टाइटल: फैजाबाद बार एसोसिएशन बनाम बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 19804-19805/2024