Karnataka Stamp Act | सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य में दस्तावेज स्वीकार करने के लिए घाटे वाले स्टाम्प ड्यूटी पर दस गुना जुर्माना लगाने को मंजूरी दी

Update: 2024-09-07 05:20 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक स्टाम्प एक्ट, 1957 के तहत वादी द्वारा भुगतान न किए गए घाटे वाले स्टाम्प ड्यूटी पर दस गुना जुर्माना लगाने को उचित ठहराया।

अपीलकर्ता चाहता था कि मुकदमे के समझौते को अंतरिम चरण में साक्ष्य में स्वीकार किया जाए। हालांकि, समझौते पर पर्याप्त स्टाम्प नहीं था। इसलिए एक्ट की धारा 34 के अनुसार, अपीलकर्ता को पर्याप्त स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान न करने के लिए दंड के रूप में ट्रायल कोर्ट द्वारा घाटे वाले स्टाम्प ड्यूटी का दस गुना भुगतान करने का निर्देश दिया गया। ट्रायल कोर्ट का आदेश हाईकोर्ट ने बरकरार रखा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील की गई।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता/वादी द्वारा यह तर्क दिया गया कि निर्णय और डिक्री पारित करने के समय केवल घाटे वाले स्टाम्प ड्यूटी को ही एकत्र किया जाना चाहिए। जुर्माना लगाना अवैध और गलत है।

अपीलकर्ता का तर्क खारिज करते हुए जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता का मामला एक्ट की धारा 34 के अंतर्गत आता है, जिसके अनुसार विधिवत स्टाम्प न किए गए दस्तावेजों को साक्ष्य में अस्वीकार्य माना जाता है, इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा जुर्माना लगाने यानी स्टाम्प ड्यूटी की कमी की राशि का दस गुना जुर्माना लगाने में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

जस्टिस एसवीएन भट्टी द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,

“ऐसा होने पर जब ट्रायल कोर्ट ने स्टाम्प ड्यूटी की कमी पर दस गुना जुर्माना लगाया तो अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि वह स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान तब करेगा, जब विशिष्ट प्रदर्शन का आदेश दिया जाएगा। हमारे विचार से अपीलकर्ता का मामला एक्ट की धारा 34 के अंतर्गत आता है और सही रूप से दस गुना जुर्माना लगाया गया।”

इस पहलू पर कि क्या ट्रायल कोर्ट के पास घाटे की स्टाम्प ड्यूटी राशि के दस गुना से कम जुर्माना लगाने का विवेकाधिकार है, न्यायालय ने गंगप्पा और अन्य बनाम फक्किरप्पा (2018) के मामले का संदर्भ लिया, जहां यह माना गया कि अपर्याप्त रूप से स्टाम्प किए गए दस्तावेजों को स्वीकार करते समय ट्रायल कोर्ट के पास जुर्माना लगाने का कोई विवेकाधिकार नहीं है।

तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: एन.एम. थेर्थेगौड़ा बनाम वाई.एम. अशोक कुमार और अन्य, सिविल अपील संख्या 10038/2024

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