Judicial Officers' Pay | सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को SNJPC प्रस्तावों पर दावा दायर करने के 4 सप्ताह के भीतर धनराशि वितरित करने का निर्देश दिया

Update: 2024-08-27 12:08 GMT

सुप्रीम कोर्ट राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को न्यायालय के पूर्व निर्देशों के अनुसार न्यायिक अधिकारियों द्वारा बकाया और भत्तों के भुगतान के लिए किए गए दावों की तिथि से 4 सप्ताह के भीतर धनराशि वितरित करने का निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (SNJPC) की सिफारिशों के अनुसार न्यायिक अधिकारियों को बकाया भुगतान के निर्देशों का पालन न करने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी। मामले में एमिक्स क्यूरी एडवोकेट के परमेशर ने न्यायालय की सहायता की।

इससे पहले न्यायालय ने उन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य और वित्तीय सचिवों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया था, जिन्होंने अनुपालन नहीं किया।

न्यायालय ने पाया कि अब तक 4 राज्यों ने अधिकारियों के बकाया और भत्ते के भुगतान के निर्देशों का पूर्ण अनुपालन किया। इनमें तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और मध्य प्रदेश शामिल हैं।

शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों- पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, केरल, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, दिल्ली, झारखंड, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, नागालैंड, हरियाणा के संबंध में न्यायालय ने अनुपालन की स्थिति पर उनके हलफनामों पर गौर किया और यह सुनिश्चित करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया कि राज्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए धन का वितरण किया जाए। इन राज्यों के खिलाफ कार्यवाही बंद करने का निर्देश दिया गया।

इसके अतिरिक्त, पीठ ने न्यायिक अधिकारियों द्वारा उनके लंबित बकाया या भत्तों के संबंध में उठाई गई किसी भी व्यक्तिगत शिकायत को हल करने के लिए सामान्य निर्देश भी जारी किए।

इनमें शामिल हैं- (1) व्यक्तिगत शिकायतों को हाईकोर्ट जजों की समितियों के ध्यान में लाया जाना (विशिष्ट भत्तों से संबंधित मुद्दों सहित)।

(2) हाईकोर्ट जजों की समितियां विशेष रूप से यह सुनिश्चित करेंगी कि 4 जनवरी के आदेश में पैराग्राफ 85,86 के अनुसार मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) 30 सितंबर, 2024 तक लागू की जाए; न्यायालय के 4 जनवरी के आदेश में प्रत्येक हाईकोर्ट द्वारा जिला न्यायपालिका की सेवा शर्तों के लिए एसओपी गठित करने का निर्देश दिया गया, जिससे लंबित बकाया और भत्ते वितरित करने के लिए निर्धारित समय-सीमा निर्धारित की जा सके।

(3) लंबित मुद्दों, भत्ते आदि को हल करने के लिए हाईकोर्ट द्वारा समिति से हर महीने एक बार बैठक करने का अनुरोध किया जाता है।

जोखिम भत्ते और अग्रिम वेतन वृद्धि के मुद्दों पर

सुनवाई के दौरान, नागालैंड राज्य ने प्रस्तुत किया कि न्यायिक अधिकारियों के लिए जोखिम भत्ता स्वीकृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य में अन्य सिविल सेवकों को जोखिम भत्ता नहीं मिलता है। हालांकि, न्यायिक अधिकारियों की ओर से पेश एडवोकेट बीके शर्मा ने इस पर विवाद किया।

न्यायालय ने जटिलता को हल करने के लिए जजों की समिति को यह सत्यापित करने का निर्देश दिया कि क्या अन्य सिविल सेवकों को जोखिम भत्ते का भुगतान किया जाता है। यह भी स्पष्ट किया गया कि जोखिम भत्ते की दर सिविल सेवकों को भुगतान की जाने वाली दर के अनुसार होनी चाहिए। यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि सिविल अधिकारियों को कोई जोखिम भत्ता नहीं दिया जाता है तो अधिकारी इसके हकदार नहीं होंगे।

नागालैंड के वकील द्वारा उठाया गया अन्य मुद्दा न्यायिक अधिकारी की नई पदोन्नति के प्रत्येक चरण में उच्च योग्यता के लिए अग्रिम वेतन वृद्धि प्रदान करने पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।

पहले के निर्देशों के अनुसार, न्यायिक अधिकारी द्वारा उच्च योग्यता प्राप्त करने पर 3 अग्रिम वेतन वृद्धि दी जानी थी और डॉक्टरेट प्राप्त करने की स्थिति में एक और वेतन वृद्धि दी जानी थी।

नागालैंड के वकील ने कहा,

"हमने पहले ही इसका अनुपालन कर लिया है, अब अधिकारी कहते हैं कि प्रत्येक पदोन्नति पर हमें 3 वेतन वृद्धि दी जानी चाहिए, यह वास्तविक बाधा है, जिसका राज्य सामना कर रहा है।"

उक्त मुद्दे को हाईकोर्ट की समिति के जजों द्वारा हल नहीं किया जा सका। इस पहलू पर स्पष्टीकरण मांगने वाला आवेदन अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा गया। परमेश्वर और शर्मा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह मुद्दा अन्य राज्यों से भी संबंधित है।

पीठ ने दोनों वकीलों को निर्देश दिया कि वे इस बात का चार्ट तैयार करें कि देश भर के राज्यों में एसीपी के लिए निर्देशों का कार्यान्वयन किस तरह हुआ, जिससे इस संबंध में पूरे भारत में व्यापक निर्देश जारी किए जा सकें।

उच्च योग्यता के लिए नागालैंड राज्य द्वारा एसीपी के भुगतान के मुद्दे को स्थगित करते हुए सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा:

"हमारा प्रथम दृष्टया यह विचार है कि यह एसीपी हर स्तर पर दी जानी चाहिए, यह एक बार का प्रोत्साहन नहीं है।"

ध्यान रहे कि न्यायालय ने पटना और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों के वेतन का भुगतान न करने के संबंधित मुद्दे की सुनवाई आगामी शुक्रवार को निर्धारित की है।

11 जुलाई को न्यायालय ने कई चूक करने वाले राज्यों को अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के लिए 20 अगस्त तक की अंतिम समय सीमा दी थी।

पिछली सुनवाई में न्यायालय को सूचित किया गया कि निम्नलिखित राज्यों ने अभी भी 4 जनवरी के निर्देशों का अनुपालन नहीं किया: (vii) असम; (viii) नागालैंड; (ix) मेघालय; (x) हिमाचल प्रदेश; (xi) जम्मू और कश्मीर; (xii) लद्दाख; (xiii) झारखंड; (xiv) केरल; (xv) बिहार; (xvi) हरियाणा; (xvii) ओडिशा।

न्यायालय ने 4 जनवरी को अपने निर्णय में राज्यों को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और भत्ते के संबंध में द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (SNJPC) की सिफारिशों को लागू करने और 29 फरवरी तक बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

केस टाइटल: अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यूपी (सी) संख्या 643/2015

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