पद छोड़ने के बाद जज केस फाइल अपने पास नहीं रख सकते: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज द्वारा रिटायरमेंट के बाद जारी किया फैसला रद्द किया

Update: 2024-02-20 06:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला इस आधार पर रद्द कर दिया कि जज ने इसे रिटायर्ड होने के बाद जारी किया।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने कहा कि जज द्वारा पद छोड़ने के बाद मामले की फाइल को अपने पास रखना घोर अनुचितता है। इसके साथ ही खंडपीठ ने अपील को नए सिरे से विचार करने के लिए हाईकोर्ट में भेज दिया।

इस मामले में हाईकोर्ट के एकल जज ने 17 अप्रैल, 2017 को आपराधिक अपील में ऑपरेटिव भाग घोषित करते हुए एक पंक्ति का आदेश सुनाया। जज 26 मई, 2017 को रिटायर्ड हो गए। कारणों सहित विस्तृत निर्णय जज द्वारा जारी किया गया, रिटायरमेंट के लगभग पांच महीने बाद 23 अक्टूबर, 2017 को ही।

सीबीआई ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सीबीआई द्वारा किए गए आग्रह का आधार यह था कि फैसला जज के रिटायर्ड होने के बाद सुनाया गया।

जज द्वारा मामले को संभालने के तरीके पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

"..यह स्पष्ट है कि जज द्वारा पद छोड़ने के बाद भी उन्होंने कारण बताए और निर्णय तैयार किया। हमारे अनुसार, पद छोड़ने के बाद 5 महीने की अवधि के लिए किसी मामले की फाइल को अपने पास रखना घोर अनुचितता का कार्य है। इस मामले में जो किया गया, हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते।"

न्याय होता दिखना चाहिए

न्यायालय ने आगे कहा:

"लॉर्ड हेवार्ट ने सौ साल पहले कहा था कि "न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए भी दिखना चाहिए"। इस मामले में जो किया गया, वह लॉर्ड हेवार्ट ने जो कहा था, उसके विपरीत है। हम इस तरह के अनुचित कृत्यों का समर्थन नहीं कर सकते। इसलिए हमारे विचार में इस न्यायालय के लिए एकमात्र विकल्प विवादित फैसला रद्द करना और नए फैसले के लिए मामलों को हाईकोर्ट में भेजना है।"

इसके साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं किया।

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