यदि चुनाव के 12 महीने के भीतर कास्ट सर्टिफिकेट प्रस्तुत नहीं किया गया तो महाराष्ट्र में आरक्षित सीट से पंचायत सदस्य अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में एससी/ओबीसी के लिए आरक्षित सीट से निर्वाचित होने वाले पंचायत सदस्य यदि वे अपने कास्ट सर्टिफिकेट (Caste Certificate) के संबंध में जांच समिति से 12 महीने के भीतर वैधता सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं तो वे स्वतः ही चुनाव के अयोग्य हो जाएंगे।
इसका कारण महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम 1959 की धारा 10-1ए का प्रभाव है।
महाराष्ट्र अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विमुक्त जाति, घुमंतू जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा वर्ग (जारी करने और सत्यापन का विनियमन) जाति सर्टिफिकेट एक्ट, 2000 के अनुसार [कास्ट सर्टिफिकेट, 2000 ], आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक व्यक्ति को सक्षम प्राधिकारी से जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी कास्ट सर्टिफिकेट जांच समिति द्वारा सत्यापन और वैधता प्रमाण पत्र दिए जाने के अधीन मान्य होगा।
पंचायत अधिनियम की धारा 10-1ए के अनुसार, आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने के इच्छुक व्यक्तियों को नामांकन पत्र के साथ जांच समिति से जाति वैधता सर्टिफिकेट प्रस्तुत करना होगा। इस धारा का प्रावधान किसी विधवा को वैधता कास्ट सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने के लिए चुनाव की तारीख से 12 महीने का समय देता है, यदि नामांकन दाखिल करने के समय उसके पास जाति वैधता सर्टिफिकेट नहीं है। प्रावधान में आगे कहा गया कि यदि जाति वैधता सर्टिफिकेट 12 महीने की अवधि के भीतर प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो "उसका चुनाव पूर्वव्यापी रूप से समाप्त माना जाएगा और उसे सदस्य होने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।"
इस प्रावधान को अनंत एच. उलाहलकर एवं अन्य बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य[2017] मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा अनिवार्य घोषित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने शंकर पुत्र रघुनाथ देवरे (पाटिल) बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य[2019] में इस फैसले को बरकरार रखा।
मौजूदा मामले में अपीलकर्ता नंबर 1 ने ग्राम जम्बुलान की ग्राम पंचायत का चुनाव आरक्षित सदस्य के रूप में लड़ा। 30.12.2020 (उनके नामांकन की तारीख) को उन्होंने जाति छानबीन समिति को जाति वैधता सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया। चुनाव 18.01.2021 को हुए और 21.01.2021 को परिणाम घोषित किए गए, जिससे अपीलकर्ता नंबर 1 निर्वाचित सदस्य बन गए। बारह महीने की अवधि 20.01.2022 को समाप्त हो गई। हालांकि, वह सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने में विफल रहे, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सदस्यता स्वतः ही अयोग्य हो गई। चूंकि हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं के खिलाफ फैसला सुनाया, इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि उम्मीदवार ने जाति वैधता सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने में चूक की, इसलिए उनका चुनाव अवैध घोषित किया जा सकता है। अगला सवाल यह था कि क्या उम्मीदवार जाति वैधता सर्टिफिकेट (ग्राम पंचायतों, जिला परिषदों और पंचायत समितियों के कुछ चुनावों के लिए) जमा करने की अवधि के महाराष्ट्र अस्थायी विस्तार अधिनियम, 2023 के संरक्षण का हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वह अस्थायी विस्तार अधिनियम के तहत सुरक्षा के हकदार नहीं हैं, क्योंकि वह मंदाकनी कचरू कोकणे उर्फ मंदाकनी विष्णु गोडसे बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए सामान्य निर्देशों के संदर्भ में निर्धारित समय के भीतर जांच समिति को चुनाव परिणाम बताने में विफल रहे।
उनकी सदस्यता की जाति वैधता सरपंच (अपीलकर्ता नंबर 2) के खिलाफ पारित अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ी हुई थी। समझने के लिए अविश्वास प्रस्ताव को कुल सदस्यों की कम से कम तीन-चौथाई संख्या द्वारा पारित किया जाना था, जो 'बैठने' और 'वोट' देने के हकदार थे। यदि अपीलकर्ता नंबर 1 सदस्य के रूप में 'बैठने' का हकदार था तो अपीलकर्ता नंबर 2 के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव में 'स्थिर' नहीं हो सकता।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस के.वी. विश्वनाथ की खंडपीठ का मानना था कि सरपंच के खिलाफ विधिवत अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।
खंडपीठ ने कहा,
“जो लोग आरक्षित सीट के लिए चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं और जो नामांकन की तारीख से पहले आवेदन दाखिल करके वैधता प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने का जोखिम उठाते हैं, उनसे यह उम्मीद करना समझदारी है कि वे अपने आवेदन के अभियोजन में अत्यधिक परिश्रम दिखाएंगे। इसका मतलब यह होगा कि उनसे वह सब करने की अपेक्षा की जाती है, जो उनके नियंत्रण में है और वे जांच समिति के समक्ष विचार के लिए वैध आवेदन प्रस्तुत करेंगे।''
इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता नंबर 1 ने वह सब कुछ नहीं किया, जो आवश्यक था, जो उसके नियंत्रण में था। यह बताया गया कि अपीलकर्ता का आवेदन 10.07.2023 को यानी जब अस्थायी विस्तार अधिनियम लागू हुआ, तब भी लंबित था।
इस प्रकार, न्यायालय का विचार था कि इस अधिनियम के तहत सुरक्षा बढ़ाने से अपीलकर्ता नंबर 1 को अपनी गलती का फायदा उठाने का मौका मिलेगा।
इसे देखते हुए न्यायालय ने माना कि स्वत: अयोग्यता के कारण अपीलकर्ता नंबर 1 सदस्य नहीं रह गया।
अदालत ने अपने फैसले में कहा,
"हाईकोर्ट को यह निर्देश देना भी उचित है कि अपीलकर्ता नंबर 2 को सरपंच के रूप में शक्तियों का प्रयोग करना बंद कर देना चाहिए और आगे यह निर्देश देना चाहिए कि गांव के सरपंच पद के लिए चुनाव को नए सिरे से अधिसूचित किया जाए।"
केस टाइटल: सुधीर विकास कालेल बनाम बापू राजाराम कालेल, डायरी नंबर- 41796 - 2023