हाईकोर्ट को एक ही आरोपी को बार-बार अंतरिम जमानत नहीं देनी चाहिए; या तो नियमित जमानत दें या फिर अस्वीकार करें: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-04-25 05:10 GMT
हाईकोर्ट को एक ही आरोपी को बार-बार अंतरिम जमानत नहीं देनी चाहिए; या तो नियमित जमानत दें या फिर अस्वीकार करें: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को जमानत देते समय हाईकोर्ट को एक ही आवेदक को बार-बार अंतरिम जमानत नहीं देनी चाहिए। न्यायालय को या तो नियमित जमानत देनी चाहिए या उसे अस्वीकार करना चाहिए, लेकिन जहां तक ​​अंतरिम जमानत का सवाल है तो राहत केवल अपवाद के रूप में विशिष्ट परिस्थितियों में ही दी जानी चाहिए।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने कहा,

"हालांकि, कुछ मामलों में विशिष्ट परिस्थितियों का ध्यान रखने के लिए अंतरिम जमानत देना आवश्यक हो सकता है, लेकिन नियमित रूप से अंतरिम जमानत नहीं दी जानी चाहिए। न्यायालय को या तो नियमित जमानत देनी चाहिए या फिर जमानत देने से इनकार कर देना चाहिए। अंतरिम जमानत देना अपवाद होना चाहिए। इसे नियमित तरीके से और बार-बार नहीं दिया जाना चाहिए।"

न्यायालय नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत एक मामले पर विचार कर रहा था। याचिकाकर्ता पर अधिनियम की धारा 20(बी)(ii)(सी) के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया गया। विवादित आदेश के तहत ओडिशा हाईकोर्ट ने उसे अंतरिम जमानत दे दी थी, भले ही वह पहले ही लगभग 3 साल जेल में बिता चुका था।

मामले के तथ्यों और याचिकाकर्ता द्वारा काटे गए कारावास की अवधि को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट का विचार था कि यह नियमित जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला था। इस प्रकार, याचिकाकर्ता को संबंधित न्यायालय द्वारा तय की जाने वाली शर्तों और नियमों के अधीन जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।

मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट में ऐसे कई मामले आ रहे हैं, जिनमें एक ही आवेदक/आरोपी को बार-बार अंतरिम जमानत दिए जाने को चुनौती दी जा रही है।

इस पृष्ठभूमि में जस्टिस धूलिया और जस्टिस चंद्रन की खंडपीठ ने चेतावनी दी कि अंतरिम जमानत की राहत केवल विशेष परिस्थितियों में अपवाद के रूप में ही दी जानी चाहिए।

केस टाइटल: असीम मलिक बनाम ओडिशा राज्य, डायरी नंबर 57403-2024

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