Gujarat Value Added Tax Act | 'खरीद मूल्य' की परिभाषा में मूल्य वर्धित कर शामिल नहीं: सुप्रीम कोर्ट
गुजरात मूल्य वर्धित कर अधिनियम 2003 (GVAT) के तहत 'खरीद मूल्य' की परिभाषा की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को कहा कि मूल्य वर्धित कर को खरीद मूल्य की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि कर की गणना करने के लिए खरीद मूल्य में कोई मूल्य वर्धित कर नहीं जोड़ा जाएगा, क्योंकि इसका उल्लेख GVAT की धारा 2(18) के तहत कर/शुल्क की श्रेणियों में नहीं किया गया।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा,
"इसलिए खरीद मूल्य किसी भी खरीद के लिए भुगतान की गई या देय मूल्यवान राशि होगी, जिसमें इस धारा में बताए गए अन्य शुल्कों के अलावा दो अधिनियमों के तहत लगाए गए या लगाए जाने योग्य शुल्कों की राशि शामिल होगी। इसका दायरा धारा में उल्लिखित दो अधिनियमों तक ही सीमित रखा गया। इसका विस्तार नहीं किया जा सकता। इसलिए यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि विधानमंडल का इरादा मूल्य वर्धित कर को खरीद मूल्य के दायरे से बाहर रखना था, क्योंकि इसका उल्लेख इसके तहत सूचीबद्ध कर/शुल्कों की श्रेणियों में नहीं मिलता।"
संक्षेप में, अदालत ने कहा कि GVAT की धारा 2(18) के तहत परिभाषित 'खरीद मूल्य' की परिभाषा में केवल दो अधिनियमों यानी केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1985 और सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के रूप में लगाए गए शुल्क और लेवी शामिल होंगे और इसमें कोई अन्य कर शामिल नहीं होगा।
जस्टिस मसीह द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया,
"GVAT की धारा 2 की उपधारा (18) जो 'खरीद मूल्य' को परिभाषित करती है, धारा 2 की उपधारा 32 जो 'खरीद के कारोबार' को परिभाषित करती है तथा GVAT Act की धारा 11 जो कर क्रेडिट के अधिकार से संबंधित है, के सुसंगत पठन से केवल निष्कर्ष निकलता है कि खरीद मूल्य में वे खरीद शामिल नहीं होंगी, जिन पर कोई मूल्य वर्धित कर का दावा नहीं किया गया था और न ही दिया गया तथा खरीद पर मूल्य वर्धित कर का घटक पहले ही चुकाया जा चुका है। तदनुसार, खरीद के कर योग्य कारोबार की गणना दोनों घटकों को घटाने के बाद करनी होगी जैसा कि पहले बताया गया।"
न्यायालय ने कहा,
"इसलिए खरीद के कर योग्य कारोबार की गणना तथा खरीद के कटौती मूल्य जिस पर कोई कर क्रेडिट का दावा नहीं किया गया और न ही दिया गया तथा खरीद पर पहले ही चुकाए गए मूल्य वर्धित कर के घटक को GVAT Act की धारा 11(3)(बी) के तहत उसकी कर देयता की गणना करते समय प्रतिवादी डीलर के कुल कारोबार से बाहर रखा गया।"
कर क़ानूनों की सख़्त व्याख्या की जानी चाहिए, जिससे उन लोगों को शामिल न किया जा सके जिन पर कर लगाने का इरादा नहीं था या जिन्हें कर लगाने की समझ नहीं थी।
न्यायालय ने आगे कहा,
“न्यायालय का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य क़ानून को वैसे ही पढ़ना है, जैसा वह है और अगर उसमें दिए गए शब्द स्पष्ट और अस्पष्ट हैं तो केवल एक ही अर्थ निकाला जा सकता है। जहां तक कराधान क़ानूनों का संबंध है, न्यायालय परिणामों की परवाह किए बिना उक्त अर्थ को लागू करने के लिए बाध्य हैं। भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 265 राज्य को कानून के अधिकार के बिना नागरिकों से कर वसूलने से रोकता है। कर क़ानूनों की सख़्त व्याख्या की जानी चाहिए, जिसका अर्थ है कि विधायिका कुछ परिस्थितियों में कुछ व्यक्तियों पर कर लगाने का आदेश देती है, जिसे उन लोगों को शामिल करने के लिए विस्तारित या व्याख्या नहीं किया जा सकता, जिन्हें कर लगाने का इरादा नहीं था या जिन्हें कर लगाने की समझ नहीं थी। करदाता पर स्पष्ट शब्दों के बिना कर नहीं लगाया जाना चाहिए। उस उद्देश्य के लिए उस क़ानून में इस्तेमाल किए गए शब्दों के प्राकृतिक निर्माण के अनुसार ही कर लगाया जाना चाहिए। इन शब्दों को वैसे ही पढ़ा जाना चाहिए जैसे वे हैं। इसलिए उन्हें जोड़ा या प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, जो प्रावधान में व्यक्त किए गए अर्थ के अलावा कोई अन्य अर्थ दे सकता है।”
उपर्युक्त अवलोकन के आधार पर राज्य द्वारा आरोपित आदेश के खिलाफ पेश की गई अपील खारिज कर दी गई और न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश बहाल कर दिया गया।
केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम मेसर्स अंबुजा सीमेंट लिमिटेड, सिविल अपील नंबर 7874/2024