SC/ST Act के तहत दोषसिद्धि के लिए महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध जाति के आधार पर किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC/ST Act) की धारा 3(1)(xi) के तहत दंडनीय अपराध के लिए सजा बरकरार नहीं रखी जा सकती, अगर जाति के आधार पर किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का कृत्य नहीं किया गया हो।
कोर्ट ने कहा,
"SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) की भाषा में प्रावधान है कि अपराध अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति पर इस इरादे से किया जाना चाहिए कि यह जाति के आधार पर किया जा रहा है।"
उक्त धारा इस प्रकार है: जो कोई भी, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होते हुए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला पर अपमान करने या उसका शील भंग करने के इरादे से हमला करता है या बल का प्रयोग करता है, उसे कारावास की सजा दी जाएगी। जिसकी अवधि छह महीने से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के सहमत निष्कर्षों को खारिज करते हुए कहा:
"धारा को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि शील भंग करने का अपराध इस इरादे से किया जाना चाहिए कि पीड़िता अनुसूचित जाति वर्ग की है।"
मासूमशा हसनशा मुसलमान बनाम महाराष्ट्र राज्य 2000(3) एससीसी 557 का संदर्भ दिया गया।
वर्तमान मामले में आरोप यह है कि अभियोजक/शिकायतकर्ता को आरोपी अपीलकर्ता के घर में घरेलू काम करने के लिए नियुक्त किया गया, जिसने उसकी लज्जा भंग करने की कोशिश की, जबकि अभियोक्त्री/शिकायतकर्ता घर का काम कर रही थी।
मामले के रिकॉर्ड पर गौर करते हुए अदालत ने कहा,
"अभियोक्ता के उच्चतम आरोपों से भी आरोपी द्वारा आपत्तिजनक कृत्य इस इरादे से नहीं किया गया कि वह अनुसूचित जाति से संबंधित व्यक्ति के साथ ऐसा कर रहा था।"
आरोपी-अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 451, 354 और SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया।
दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील की, जहां हाईकोर्ट ने SC/ST Act के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी और आईपीसी के तहत किए गए अपराध के लिए आरोपी को आरोपमुक्त कर दिया। हाईकोर्ट ने SC/ST Act के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा कि एक्ट के तहत आरोपी द्वारा किया गया अपराध समझौता योग्य नहीं है।
यह SC/ST Act के तहत आरोपियों को दोषी ठहराने वाले हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ है कि आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील दायर की।
अदालत ने SC/ST Act के तहत दोषसिद्धि रद्द करते हुए कहा,
"SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) के तहत अपराध के लिए आरोपी अपीलकर्ता की सजा अन्यथा गुण-दोष के आधार पर टिकाऊ नहीं है।"
अपीलकर्ता को SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) के तहत आरोप से बरी किया जाता है।
केस टाइटल: दशरथ साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
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