Farmers Protest : हरियाणा ने सरकार कहा- प्रदर्शनकारी की मौत की न्यायिक जांच से पुलिस का मनोबल गिरता है; सुप्रीम कोर्ट ने असहमति जताई
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य द्वारा पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा प्रदर्शनकारी किसान की मौत की न्यायिक जांच के आदेश पर रोक लगाने की याचिका खारिज की।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने कहा कि समिति पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए गए बल के बारे में अपनी राय देगी। इसके आधार पर या तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
पंजाब-हरियाणा सीमा पर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने वाले कानून की मांग को लेकर प्रदर्शन करते हुए शुभकरण सिंह की 21 फरवरी को मौत हो गई थी। आरोप है कि हरियाणा पुलिस द्वारा चलाई गई गोली लगने से उनकी मौत हुई, जिसके बाद उनके परिवार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में एक्टिंग चीफ जस्टिस (एसीजे) जीएस संधावालिया और जस्टिस लपिता बनर्जी ने कहा कि जांच को "स्पष्ट कारणों से" पंजाब या हरियाणा को नहीं सौंपा जा सकता। हाईकोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की रिटायर जज जस्टिस जयश्री ठाकुर की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की, जिनकी सहायता पंजाब के एडीजीपी प्रमोद बान और हरियाणा के एडीजीपी अमिताभ सिंह ढिल्लों करेंगे। इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की गई।
कार्यवाही के दौरान हरियाणा राज्य की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि न्यायिक समिति को सौंपे गए विषयों में से एक यह है कि क्या कम बल का इस्तेमाल किया जा सकता था। उन्होंने इसका पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि इससे पुलिस का मनोबल गिरता है।
उन्होंने कहा,
“जहां न्यायिक निकाय जांच की निगरानी कर रहा है और उन्हें सौंपे गए विषयों में से एक यह है कि क्या यह कम बल द्वारा किया जा सकता था। मेरे सम्मानपूर्वक प्रस्तुतीकरण में यह कभी भी न्यायिक जांच का विषय नहीं हो सकता है। इससे पुलिस का मनोबल गिरता है।
इस पर जस्टिस कांत ने टिप्पणी की,
"कभी-कभी इससे उनके हाथ भी मजबूत होते हैं। कभी-कभी।"
हालांकि, मेहता ने कहा कि इस मामले में (पुलिस) अभूतपूर्व स्थिति से निपट रही थी।
अदालत किसानों के विरोध के कारण पंजाब और हरियाणा राज्यों के बीच शंभू बॉर्डर पर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नाकाबंदी से संबंधित मामले की भी सुनवाई कर रही थी। इस मामले में आदेश पारित होने के बाद हरियाणा के एडिशनल एडवोकेट जनरल लोकेश सिंहल ने फिर से न्यायिक जांच का उल्लेख किया।
हालांकि, जस्टिस कांत ने कहा,
"देखते हैं... अगर सिफारिशें आती हैं और आपको लगता है कि उन सिफारिशों में कुछ भी गलत नहीं है, तो आप शायद इस मुद्दे को नहीं उठाएंगे।"
इसके बाद एएजी ने प्रस्तुत किया कि हालांकि उन्हें बैठक के मिनट नहीं दिए जा रहे हैं, लेकिन समिति के समक्ष वीडियो प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इसके आधार पर एसपी को अपनी टिप्पणी देने के लिए कहा जाता है।
इस दलील को स्वीकार्य नहीं पाते हुए जस्टिस कांत ने कहा कि इसके बजाय, अधिकारी सार्वजनिक डोमेन में आने से पहले इन वीडियो की जांच करते हैं। तदनुसार, यह समिति के समक्ष दृढ़ता से प्रस्तुत किया जा सकता है कि वीडियो फर्जी हैं।
केस टाइटल: हरियाणा राज्य बनाम उदय प्रताप सिंह, डायरी संख्या - 30656/2024