छत्तीसगढ़ NAN घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 5 साल बाद भी ED द्वारा जांच पूरी न किया जाना चिंताजनक
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि यह चिंताजनक है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में भ्रष्टाचार से संबंधित 2015 के नागरिक पूर्ति निगम (NAN) घोटाले मामले में जांच पूरी नहीं की।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया, जिससे यह दिखाया जा सके कि आरोपी आलोक शुक्ला और नान के तत्कालीन अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अनिल टुटेजा अपनी अग्रिम जमानत का दुरुपयोग कर रहे हैं। ED ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा 2020 में दी गई उनकी अग्रिम जमानत को चुनौती दी।
जब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने प्रस्तुत किया कि वह हलफनामा दायर नहीं करना चाहते, क्योंकि इससे “न्यायपालिका की बहुत खराब तस्वीर पेश होगी, ने जस्टिस ओक ने कहा,
“क्या यह परेशान करने वाली बात नहीं कि 2019 की ECIR में आज हम 2024 में हैं। जांच पूरी नहीं हुई है, PMLA के तहत शिकायत दर्ज नहीं की गई?”
2022 में ED ने आरोपी और अधिकारियों के बीच मिलीभगत का दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट जज ऐसे लोगों के संपर्क में थे, जो आरोपियों की मदद कर रहे थे।
अदालत ने पिछले आदेश की ओर इशारा किया, जिसमें राजू का बयान दर्ज किया गया कि ED इस तर्क का समर्थन करने के लिए हलफनामा दायर करेगा कि टुटेजा और शुक्ला अग्रिम जमानत का दुरुपयोग कर रहे हैं। अदालत ने आगे सवाल किया कि न्यायपालिका का इस आरोप से क्या लेना-देना है कि आरोपी अग्रिम जमानत का दुरुपयोग कर रहे हैं।
एएसजी राजू ने कहा कि वह सीलबंद लिफाफे में सामग्री दाखिल करेंगे। हालांकि, आरोपियों के वकील ने सीलबंद लिफाफे पर आपत्ति जताई और सीलबंद लिफाफा दाखिल करने की प्रथा के खिलाफ अदालत के फैसले का हवाला दिया।
ED ने टुटेजा को अग्रिम जमानत देने के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ वर्तमान एसएलपी दायर की।
टुटेजा और शुक्ला ने रायपुर में शुरू में दर्ज और बाद में नई दिल्ली में स्थानांतरित एक ECIR के संबंध में गिरफ्तारी की आशंका के कारण अग्रिम जमानत मांगी थी। वे धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA Act) की धारा 3 और 4 के तहत आरोपी हैं।
केस टाइटल- प्रवर्तन निदेशालय बनाम अनिल टुटेजा और अन्य।