सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल की समाप्ति के बिना हिरासत में 10 साल बिताने वाले व्यक्ति को जमानत दी

Update: 2024-04-22 05:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे व्यक्ति को जमानत दी, जिसने ट्रायल की समाप्ति के बिना 10 साल हिरासत में बिताए। लोक अभियोजक को सुनने के बाद उचित नियमों और शर्तों पर आरोपमुक्त करने के लिए व्यक्ति को 1 सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने यह मानते हुए आदेश पारित किया कि उस व्यक्ति (अपीलकर्ता) को 10 साल की कैद भुगतनी पड़ी थी, जबकि गवाहों से पूछताछ बाकी है। दरअसल सुनवाई के दौरान मामले के सरकारी वकील की ओर से बताया गया कि 6 और सरकारी गवाहों से पूछताछ की मांग की गई।

जस्टिस ओक ने इससे नाराज होकर कहा,

"10 साल बीत गए...10 साल में कितने गवाहों से पूछताछ की गई?"

राज्य के वकील ने उत्तर दिया,

"21"।

सुनवाई के बाद आदेश सुनाया गया,

"अपीलकर्ता 10 साल से अधिक की अवधि के लिए कारावास से गुजर चुका है। अब राज्य की ओर से उपस्थित वकील, लोक अभियोजक के निर्देशों के आधार पर कहते हैं कि राज्य 6 और आधिकारिक गवाहों की जांच करना चाहता है। जिस तरह से मुकदमा आगे बढ़ा है और बार-बार हाईकोर्ट ने समय विस्तार दिया है...मामले के तथ्यों से हम पाते हैं कि अब अपीलकर्ता की कैद जारी नहीं रह सकती।"

हालांकि जमानत दे दी गई, लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अपीलकर्ता के वकील मामले के शीघ्र निपटान के लिए ट्रायल कोर्ट के साथ पूरा सहयोग करेंगे। ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता के वकील का एक बयान इस आशय से दर्ज किया गया कि कोई भी टाल-मटोल की रणनीति नहीं अपनाई जाएगी।

अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि यदि अपीलकर्ता मामले के शीघ्र निपटान में सहयोग नहीं करता है तो राज्य जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने के लिए खुला होगा।

केस टाइटल: योगेश नारायण राउत बनाम महाराष्ट्र राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 3494/2024

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