BREAKING| आरक्षण के लिए SC/ST से 'क्रीमी लेयर' को बाहर रखा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
अनुसूचित जातियों (SC) के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों के बीच 'क्रीमी लेयर' को SC श्रेणियों के लिए आरक्षण लाभों से बाहर रखने की आवश्यकता व्यक्त की।
वर्तमान में 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा केवल अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण पर लागू होती है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनाया। 6 जजों ने उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस त्रिवेदी ने असहमति जताई।
उप-वर्गीकरण का समर्थन करने वाले 6 जजों में से चार ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि क्रीमी लेयर बहिष्करण को SC पर लागू किया जाना चाहिए।
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने फैसले में कहा,
"राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के दायरे से बाहर करने के लिए नीति बनानी चाहिए। मेरे विचार से संविधान में निहित वास्तविक समानता प्राप्त करने का यही एकमात्र तरीका है।"
जस्टिस गवई ने कहा कि अनुसूचित जाति श्रेणी के व्यक्ति के बच्चे, जिन्हें आरक्षण का लाभ मिला है, को आरक्षण का लाभ न लेने वाले व्यक्ति के बच्चों के समान दर्जा नहीं दिया जा सकता।
जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी लागू होता है।
जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिए। यदि पहली पीढ़ी का कोई सदस्य आरक्षण के माध्यम से उच्च स्थिति तक पहुंच गया है तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का हकदार नहीं होना चाहिए।
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने जस्टिस गवई के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की और कहा कि SC/ST के रूप में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिए संवैधानिक अनिवार्यता बन जाना चाहिए।
2018 में जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने प्रमोशन में आरक्षण के संदर्भ में कहा था कि क्रीमी लेयर का बहिष्कार SC/ST पर भी लागू किया जा सकता है।
जरनैल सिंह मामले में जस्टिस आरएफ नरीमन ने लिखा,
"आरक्षण का पूरा उद्देश्य यह देखना है कि पिछड़े वर्ग के नागरिक आगे बढ़ें ताकि वे भारत के अन्य नागरिकों के साथ समान आधार पर आगे बढ़ सकें। यह तब संभव नहीं होगा जब उस वर्ग के क्रीमी लेयर को ही सार्वजनिक क्षेत्र में सभी प्रतिष्ठित नौकरियां मिल जाएं और वे खुद को बनाए रखें, जिससे बाकी वर्ग हमेशा की तरह पिछड़ा रह जाए। इस मामले में यह स्पष्ट है कि जब कोई न्यायालय SC/ST पर क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू करता है तो वह किसी भी तरह से भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 या 342 के तहत राष्ट्रपति सूची के साथ छेड़छाड़ नहीं करता है।"