यदि आत्मविश्वास को प्रेरित करती हो तो केवल मृत्यु पूर्व घोषणा दोषसिद्धि का आधार हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-03-07 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त की सजा उसी स्थिति में मृत्यु पूर्व दिए गए बयान के आधार पर कायम रखी जा सकती है, जब पीड़िता द्वारा दिया गया बयान अदालत के विश्वास को प्रेरित करता है और भरोसेमंद साबित होता है, यानी कि ऐसा मृत्यु पूर्व बयान देने के लिए पीड़िता सचेत अवस्था में हो।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने अतबीर बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार का जिक्र करते हुए कहा, “अदालत को खुद को संतुष्ट करना आवश्यक है कि बयान देने के समय मृतक मानसिक स्थिति में था और यह सिखाने, प्रोत्साहन या कल्पना का परिणाम नहीं था। आगे यह माना गया है कि जहां न्यायालय मृत्यु पूर्व दिए गए बयान के सत्य और स्वैच्छिक होने से संतुष्ट है, वहां वह बिना किसी अतिरिक्त पुष्टि के अपनी सजा का आधार बना सकता है। कोर्ट ने कहा है कि यदि सावधानीपूर्वक जांच के बाद, अदालत संतुष्ट है कि यह सच है और मृतक को गलत बयान देने के लिए प्रेरित करने के किसी भी प्रयास से मुक्त है और यदि यह सुसंगत है, तो इसे दोषसिद्धि का सही आधार ठहराने में कोई कानूनी बाधा नहीं होगी, भले ही इसकी कोई पुष्टि न हो।''

मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरोपी की सजा को केवल मृत पीड़िता के मृत्यु पूर्व बयान के आधार पर बरकरार रखा गया था, जिसमें कहा गया था कि आरोपी ने उस पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय के निष्कर्षों की पुष्टि की।

आरोपी/अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया था कि मृतक पीड़िता द्वारा मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर आरोपी को दोषी ठहराने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तब दर्ज किया गया था जब उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।

हालांकि, आरोपी की इस दलील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से पता चलेगा कि बयान देने के समय मृतक मानसिक स्थिति में था और यह सिखाने, कल्पना या प्रोत्साहन का नतीजा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मृतक का मृत्यु पूर्व बयान अभियुक्त की सजा का आधार बनाने के लिए ठोस, भरोसेमंद और विश्वसनीय है क्योंकि यह मृतक को गलत बयान देने के लिए प्रेरित करने के किसी भी प्रयास से मुक्त था

इन्हीं अवलोकनों के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता/अभियुक्त की दोषसिद्धि को कायम रखा गया।

केस टाइटलः नईम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, आपराधिक अपील संख्या 1978/2022

साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एससी) 199

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