क्या अनुच्छेद 32 के तहत किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ रिट जारी की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा

Update: 2024-03-16 06:06 GMT

सुप्रीम कोर्ट इस महत्वपूर्ण बिंदु की जांच करने के लिए तैयार कि "क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत निजी व्यक्ति के खिलाफ रिट जारी की जा सकती है और यदि हां, तो किन परिस्थितियों में उचित रिट जारी की जा सकती है?"

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सवाल उठाया। जगन मोहन रेड्डी ने जस्टिस एन.वी. रमन्ना, जो उस समय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बनने की कतार में थे, पर अनुचितता का आरोप लगाया था।

विस्तार से बताएं तो 11 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने सीजेआई एस ए बोबडे को शिकायत लिखी। इसमें आरोप लगाया गया कि हाईकोर्ट के कुछ जज राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में प्रमुख विपक्षी दल तेलुगु देशम पार्टी के हितों की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं।

शिकायत की खास बात - जिसका विवरण शनिवार शाम को सीएम के सलाहकार अजय केलम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को बताया- यह है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस एन वी रमन्ना पर आरोप लगाया गया, जो अगली कतार में हैं। यहां सीजेआई पर हाईकोर्ट में न्याय प्रशासन को प्रभावित करने का आरोप है।

अन्य बातों के अलावा, "आंध्र प्रदेश राज्य की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने और गिराने" का प्रयास करने का आरोप जस्टिस रमन्ना पर लगाया गया, जो आगे चलकर भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश बने।

बाद में सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच में आंध्र के सीएम द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए जस्टिस रमन्ना को क्लीन चिट दे दी गई।

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मुक्ति सिंह के माध्यम से प्रैक्टिसिंग वकील सुनील कुमार सिंह की ओर से दायर वर्तमान याचिका में ई.एम. शंकरन नंबूदरीपाद बनाम टी. नारायणन नांबियार, 1970 एआईआर 2015 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया गया।

नांबियार के मामले में केरल के मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदिरीपाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ बयान दिए कि जज "वर्ग घृणा, वर्ग हितों और वर्ग पूर्वाग्रहों द्वारा निर्देशित और हावी हैं।" इसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेखनीय फैसला सुनाया, जिसमें ईएमएस को अवमानना का दोषी ठहराया गया।

सिंह ने तर्क दिया कि पत्र की सामग्री और मीडिया में इसके जारी होने से "जनता को चोट पहुंची"।

सिंह ने कहा,

"जो बात दांव पर लगी है, वह विश्वास है, जिसे लोकतांत्रिक समाज में अदालत को जनता के बीच प्रेरित करना चाहिए। इस प्रथा की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"

इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अदालतों की अवमानना और मानहानि के संबंध में उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

याचिका में कहा गया,

"आज के समाज में, जहां मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा कुछ ही दिनों या कुछ घंटों के भीतर बढ़ सकती है, यह न्यायपालिका की छवि को प्रभावित कर सकती है। इसलिए न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास प्रभावित हो सकता है।"

केस टाइटल: सुनील कुमार सिंह बनाम वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी., डायरी नंबर- 22175 – 2020

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