क्या स्थानीय निकाय सैनिटरी अपशिष्ट एकत्र करने के लिए एडिशनल फी ले सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से जवाब मांगा

Update: 2024-07-10 05:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को सैनिटरी अपशिष्टों के निपटान के लिए स्थानीय निकायों द्वारा एडिशनल फी (Additional Fee) वसूलने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दिया।

न्यायालय ने कहा कि गोवा, छत्तीसगढ़, केरल, त्रिपुरा, असम और पंजाब, मध्य प्रदेश ने अपने जवाबी हलफनामे दाखिल कर दिए, जबकि अन्य राज्य दो सप्ताह के भीतर ऐसा करेंगे।

इससे पहले याचिकाकर्ता इंदु वर्मा ने केरल के कोच्चि निगम द्वारा घरों से सैनिटरी अपशिष्ट एकत्र न करने का उजागर किया था।

याचिकाकर्ता ने कहा,

“मैं केवल अंतरिम आदेश की मांग कर रहा हूं, जिसके तहत निगम को नियमों (ठोस अपशिष्ट प्रबंधन) के अनुसार घरों से सैनिटरी अपशिष्ट एकत्र करने की अनुमति दी जाए। नियमों के अनुसार निगम को सैनिटरी अपशिष्ट को 'ठोस अपशिष्ट' के हिस्से के रूप में एकत्र करना चाहिए। 'ठोस अपशिष्ट' की परिभाषा में सैनिटरी अपशिष्ट शामिल है।”

फी के बारे में बताते हुए जब केरल राज्य के वकील ने कहा कि यह फी इसलिए लिया जाता है, क्योंकि इस (स्वच्छता) कचरे के निपटान का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है तो न्यायालय ने सख्ती से जवाब दिया।

न्यायालय ने कहा,

"क्या यह किसी और चीज़ का व्यंजना है? यूजर्स फी वैधानिक हो सकता है, लेकिन आप एडिशनल फी कैसे ले सकते हैं?"

सुनवाई की शुरुआत में याचिकाकर्ता ने कहा कि घर में मासिक धर्म वाली हर महिला को मासिक धर्म के दौरान निकलने वाले कचरे को इकट्ठा करने के लिए निश्चित नंबर पर कॉल करना पड़ता है। यह कैसे समझदारी है? नियमों के अनुसार, स्वच्छता संबंधी कचरा ठोस कचरे का हिस्सा है।

इसके बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता से उन राज्यों की पहचान करने को कहा जो स्वच्छता संबंधी कचरे के निपटान के लिए इस तरह का अलग फी ले रहे हैं। इसने याचिकाकर्ता से उन श्रेणियों की पहचान करने को भी कहा जिन्हें इस फी से छूट की आवश्यकता है, जिनमें स्कूल जाने वाले बच्चे, युवा या बूढ़े और गरीब या हाशिए पर रहने वाले लोग शामिल हैं।

इस पर एएसजी ऐश्वर्या भट्टी ने कहा कि केंद्र ने सभी राज्यों को लिखा और उनमें से 15 राज्यों ने जवाब दिया। संघ के रुख के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने न्यायालय को बताया कि संघ ने इस पर नीतिगत निर्णय लिया है तथा स्वच्छता राज्य का विषय है।

अंततः न्यायालय ने मामले को सितंबर में सूचीबद्ध करने से पहले उपरोक्त आदेश पारित किया।

यह भी उल्लेखनीय है कि इस याचिका में अन्य सभी राज्यों को भी पक्षकार बनाया गया तथा न्यायालय ने स्पष्ट किया कि व्यापक निर्देश पारित किए जाएंगे, जो किसी राज्य तक सीमित नहीं होंगे।

याचिका में नगर निकायों द्वारा कचरा संग्रहण के लिए यूजर्स फी लगाए जाने का मुद्दा भी उठाया गया। यद्यपि फी का प्रावधान ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में है, लेकिन याचिकाकर्ता ने इसे चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यूजर्स फी के लिए कोई विशेष राशि निर्धारित नहीं की गई।

कहा गया,

“वे कोई भी फी ले सकते हैं। इसलिए केरल राज्य में भी विभिन्न घर अलग-अलग दरों का भुगतान करते हैं। ऐसे घर हैं, जो इसे लेने आने वाले व्यक्ति को 150 रुपये प्रति माह देते हैं, अन्य 200 देते हैं, कुछ 300 देते हैं, कुछ भुगतान करने में असमर्थ हैं, लेकिन फिर भी उन्हें भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है। मैंने यूजर्स फी को चुनौती दी है।”

वर्मा ने पहले एक अवसर पर प्रस्तुत किया,

“यूजर्स फी गलत नाम है। यह एक तरह की गलत धारणा है। यह संग्रह का सवाल है; संग्रह पर कोई फी क्यों होना चाहिए, यही मुद्दा है।”

केस टाइटल: इंदु वर्मा बनाम भारत संघ [डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 1062/2023]

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