क्या ED तलाशी के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों पर रोक लगा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने कानून के सवाल को खुला छोड़ा

Update: 2024-08-01 10:42 GMT

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार (1 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ली, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में यमुनानगर के पूर्व विधायक दिलबाग सिंह की गिरफ्तारी रद्द करने के पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू के अनुरोध पर न्यायालय ने कानून के सवाल को खुला रखने पर सहमति व्यक्त की कि क्या प्रवर्तन निदेशालय (ED) मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तलाशी के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों पर रोक लगा सकता है।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की।

सुनवाई की शुरुआत में एएसजी एसवी राजू ने तीन जजों की पीठ को अवगत कराया कि ED इस याचिका पर जोर नहीं देना चाहता। हालांकि, उन्होंने न्यायालय से कानून के सवाल को खुला रखने का अनुरोध किया। इसके अनुसरण में न्यायालय ने कानून के सवाल को खुला रखते हुए वर्तमान एसएलपी को वापस ले लिया।

हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने माना कि जिन व्यक्तियों के परिसरों की तलाशी ली जा रही है, उन्हें अपने दैनिक कार्यकलापों को करने से कोई नहीं रोक सकता। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने माना कि ED को उक्त व्यक्तियों यानी वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं की परिसर के भीतर गतिविधियों को रोकने का अधिकार नहीं है।

आरोपों के अनुसार, याचिकाकर्ताओं और उनके परिवार के सदस्यों को ED ने 4 जनवरी से 8 जनवरी, 2024 तक अवैध रूप से हिरासत में रखा, जब उनके घरों पर तलाशी और जब्ती हुई।

रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद हाईकोर्ट ने कहा,

"यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी अधिकारियों ने याचिकाकर्ताओं को 04.01.2024 से 08.01.2024 तक अवैध रूप से परिसर में बंधक बनाकर रखा। इस प्रकार, प्रभावी रूप से याचिकाकर्ताओं को 04.01.2024 को ही गिरफ्तार कर लिया।"

हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 18 से अपनी ताकत हासिल की। इसने कहा कि ऐसे मामलों में जहां ED के पास यह मानने का कारण है, जिसे लिखित रूप में दर्ज किया जाना है कि किसी व्यक्ति ने इस व्यक्ति या उसके कब्जे में किसी चीज के बारे में कुछ छिपाया है, उक्त व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है और उक्त संपत्ति/रिकॉर्ड को जब्त किया जा सकता है।

हालांकि, ऐसे मामलों में भी, जिस व्यक्ति की तलाशी ली जाती है, उसे 24 घंटे के भीतर निकटतम राजपत्रित अधिकारी के पास ले जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा,

"वर्तमान मामले में उत्तरदाताओं का यह स्वीकार किया गया मामला है कि उन्होंने 2002 अधिनियम की धारा 18 के प्रावधानों को लागू नहीं किया। इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं को परिसर के भीतर चार दिनों से अधिक की अवधि के लिए हिरासत में रखना/रोकना अवैध हिरासत/अवैध रोक के बराबर होगा। याचिकाकर्ताओं को 04.01.2024 को गिरफ्तार किया गया माना जाएगा।"

इसके मद्देनजर, न्यायालय ने माना कि गिरफ्तारी और रिमांड आदेश सहित सभी बाद के आदेश अवैध और कानून के खिलाफ हैं और उन्हें अलग रखा जाना चाहिए।

केस टाइटल: प्रवर्तन निदेशालय और अन्य बनाम दिलबाग सिंह @ दिलबाग संधू, एसएलपी(सीआरएल) नंबर 4044/2024

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