Bhima Koregaon Case में गौतम नवलखा को मिली जमानत, कोर्ट ने कहा- सुनवाई पूरी होने में लग सकते हैं कई साल
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (14 मई) को भीमा कोरेगांव के आरोपी गौतम नवलखा को जमानत दी। वही उनकी नजरबंदी के लिए 20 लाख रुपये का भुगतान करना होगा।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ भीमा नवलखा को जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी। पत्रकार और एक्टिविस्ट नवलखा को 1 जनवरी, 2018 को पुणे जिले के भीमा कोरेगांव गांव में हुई हिंसा में कथित संलिप्तता के लिए 14 अप्रैल, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। उनके खराब स्वास्थ्य के कारण सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया था।
जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस शिवकुमार डिगे की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पिछले दिसंबर में नवलखा को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि यह अनुमान लगाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि नवलखा ने यूएपीए की धारा 15 के तहत आतंकवादी कृत्य किया था। हालांकि, NIA द्वारा इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए समय मांगने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश पर 3 सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार इस रोक को बढ़ाया गया।
न्यायालय ने जमानत आदेश में यह स्पष्ट रूप से ध्यान देने के बाद इस अंतरिम रोक को हटा दिया कि नवलखा को चार साल से अधिक समय से जेल में रखा गया और मुकदमे को पूरा होने में "वर्षों और वर्षों और वर्षों" का समय लगेगा। न्यायालय ने संबंधित कारकों पर भी विचार किया, जिसमें यह भी शामिल है कि आरोप तय नहीं किए गए।
खंडपीठ ने कहा,
"प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि रोक के अंतरिम आदेश को बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है। अपीलकर्ता चार साल से अधिक समय से जेल में है और अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। हाईकोर्ट ने विस्तृत आदेश द्वारा इसे प्रथम दृष्टया माना है। जमानत दीजिए... मुकदमे को पूरा होने में कई-कई साल लगेंगे। इस प्रकार संबंधित विवाद पर गौर किए बिना हम रोक को आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं।''
नवलखा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने लंबे समय तक कारावास के बिंदुओं पर बहस की और कहा कि अन्य सह-अभियुक्तों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। उन्होंने हाउस अरेस्ट के लिए मांगी गई राशि को भी चुनौती दी और कहा कि यह टिकाऊ नहीं है। रामकृष्णन ने अपनी दलील इस तर्क पर रखी कि आरोपों में नवलखा की आय को ध्यान में नहीं रखा गया।
इसके विपरीत, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि कुछ सह-अभियुक्तों को जमानत नहीं दी गई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आरोप गंभीर हैं और हाईकोर्ट ने जमानत देकर गलती की है।
जहां तक नजरबंदी का सवाल है तो कोर्ट ने नवलखा को अंतरिम चरण के तौर पर 20 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। यह राशि हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत की पूर्व शर्त के रूप में चुकानी होगी।
इससे पहले, नवलखा की ओर से पेश सीनियर वकील नित्या रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि मामले में 375 गवाह थे। इसके बाद न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा कि मुकदमा "अगले दस वर्षों तक ख़त्म नहीं हो सकता।" रामकृष्णन ने यह भी चिंता व्यक्त की कि जमानत आदेश, जो हाईकोर्ट द्वारा योग्यता के आधार पर पारित किया गया, पार्टी को सुने बिना ही रोक दिया गया। तदनुसार, अदालत ने मामले को आज की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।
प्रासंगिक रूप से, मुंबई में हाउस अरेस्ट का स्थान बदलने की नवलखा की याचिका भी सूचीबद्ध है। पहले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने भीमा कोरेगांव के आरोपी गौतम नवलखा के वकील शादान फरासत से मौखिक रूप से कहा कि अगर घर में गिरफ्तारी की मांग की गई तो एनआईए द्वारा किए गए निगरानी खर्च का भुगतान किया जाना चाहिए।
इसके बाद, गौतम नवलखा के वकील शादान फरासत ने डिवीजन बेंच को अवगत कराया कि खर्चों का भुगतान करने में कोई कठिनाई नहीं है और मुद्दा ऐसे खर्चों की गणना के बारे में था।
मामले का विवरण:
1. गौतम नवलखा बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 9216/2022
2. राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनाम गौतम पी नवलखा और अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 167/2024