सिर्फ आरोपी के कोर्ट में पेश न होने पर जमानत रद्द नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि आरोपी पक्ष की गैर-हाजिरी जमानत रद्द करने का कोई आधार नहीं।
जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की तीन जजों की बेंच कलकत्ता हाईकोर्ट के जमानत रद्द करने के आदेश से संबंधित आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी।
हाईकोर्ट ने नोट किया था कि कई अवसरों पर उसने आरोपी को व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया था। हालांकि, कोर्ट ने जमानत रद्द करते हुए कहा कि न तो आरोपी और न ही उसका वकील मौजूद था। इसने दर्ज किया कि यह गैर-उपस्थिति 'कानून की प्रक्रिया से बचने के लिए प्रतिवादी नंबर 2 के ढीठ रुख को उजागर करती है।'
इस पृष्ठभूमि में मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया।
वहीं, अपीलकर्ता के वकील ने पीठ को इस तरह की गैर-उपस्थिति के कारण से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि वीआईपी गतिविधियों के कारण ट्रैफिक जाम था, इसलिए अपीलकर्ता अदालत में उपस्थित नहीं हो सका। इसके अलावा, वकील ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता का वकील संबंधित तिथि पर उपस्थित नहीं था, क्योंकि उसका वकालतनामा वापस ले लिया गया।
प्रस्तुतियां दर्ज करने के बाद न्यायालय ने कहा कि यदि जमानत दी गई तो किसी भी शर्त का उल्लंघन होने या स्वतंत्रता का दुरुपयोग होने पर उसे रद्द किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
“हम पाते हैं कि केवल इसलिए कि अपीलकर्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हुआ, जमानत रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। जमानत देने और जमानत रद्द करने के मानदंड पूरी तरह से अलग हैं। पहले से दी गई जमानत रद्द की जा सकती है, अगर यह पाया जाता है कि जिस व्यक्ति को जमानत का लाभ दिया गया, उसने किसी भी शर्त का उल्लंघन किया या गवाहों को प्रभावित करके या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करके स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया।
न्यायालय ने पाया कि आक्षेपित निर्णय में उपर्युक्त कारणों में से कोई भी शामिल नहीं है। इस प्रकार, न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया।