सुप्रीम कोर्ट में सिंधी भाषा में दूरदर्शन चैनल की मांग वाली याचिका खारिज

Update: 2024-10-14 12:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (14 अक्टूबर) को केंद्र सरकार और प्रसार भारती को भारत में भाषाई अल्पसंख्यक सिंधी समुदाय की भाषा और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए 24 घंटे का सिंधी भाषा का दूरदर्शन टीवी चैनल चलाने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका खारिज की।

कोर्ट ने सिंधी संगत द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि कोई भी नागरिक संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार के आधार पर यह दावा नहीं कर सकता कि सरकार को उनकी भाषा में एक अलग चैनल शुरू करना चाहिए।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिा (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा,

"सिंधी आबादी की भाषा को संरक्षित करने के लिए अनुच्छेद 29 के तहत जिस अधिकार का दावा किया गया, वह किसी विशेष भाषा के लिए अलग भाषा चैनल शुरू करने के लिए पूर्ण या अपरिवर्तनीय अधिकार नहीं बन सकता है।"

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा एकल पीठ और खंडपीठ दोनों द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा कि अलग भाषा चैनल शुरू करने के लिए आदेश जारी नहीं किया जा सकता। यह देखते हुए कि हाईकोर्ट द्वारा दिए गए कारण "अपवाद रहित" हैं, सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप करने से इनकार किया।

कोर्टरूम एक्सचेंज

मामला जैसे ही सुनवाई के लिए लिया गया, सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह नीतिगत मामला है।

सीजेआई ने हाईकोर्ट के समक्ष दूरदर्शन द्वारा दिए गए बयान पर भी प्रकाश डाला कि वह तीन डीडी चैनलों - डीडी गिरनार, डीडी सह्याद्री और डीडी राजस्थान में सिंधी कार्यक्रम चला रहा है, जो उन क्षेत्रों में प्रसारित होते हैं, जहां सिंधी आबादी मुख्य रूप से रहती है।

सीजेआई ने प्रतिवादियों के इस रुख का भी उल्लेख किया कि लगभग 26 लाख की छोटी आबादी के लिए अलग चैनल लगभग 20 करोड़ रुपये की वार्षिक परिचालन लागत को देखते हुए टिकाऊ नहीं था।

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि वह डीडी भाषा चैनल शुरू करने के लिए प्रतिवादियों द्वारा अपनाए गए मानदंडों को चुनौती दे रही हैं, जो क्षेत्रीयता से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि डीडी उस क्षेत्र की प्रमुख भाषा में कार्यक्रम प्रसारित करने की नीति का पालन करता है, जहां स्टेशन स्थित है।

उन्होंने तर्क दिया कि ये मानदंड 'वेडनसबरी सिद्धांतों' के अनुसार तर्कसंगतता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, क्योंकि सिंधी आबादी के पास अपना कोई राज्य नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि सिंधी पूरे देश में फैले शरणार्थी समुदाय हैं, इसलिए सिंधी भाषा के संबंध में सीधी नीति अपनाना अनुचित है।

हालांकि, सीजेआई ने बताया कि हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने डीडी की नीति को चुनौती नहीं दी थी। प्रार्थना केवल अलग चैनल शुरू करने की थी। जवाब में जयसिंह ने तर्क दिया कि न्यायालयों के पास राहत को ढालने की शक्ति है।

जयसिंह ने कहा,

"यह ऐसी भाषा का एकमात्र उदाहरण है, जिसका कोई राज्य नहीं है। शायद पारसी भाषा के साथ भी ऐसा ही है। भारत में ऐसी भाषा है, जिसका कोई राज्य नहीं है। अगर सिंध नाम का कोई राज्य होता तो एक चैनल होता। अपनी नीति को मुद्दे की क्षेत्रीयता से न जोड़ें, क्योंकि आप ऐसी भाषा से निपट रहे हैं, जिसका कोई क्षेत्र नहीं है। आप एक जैसी नीति नहीं अपना सकते।"

उन्होंने कहा कि डीडी के मानदंड अप्रासंगिक और मनमाने हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आठवीं अनुसूची के अनुसार सिंधी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।

सीजेआई ने बताया कि ये मुद्दे हाईकोर्ट के समक्ष नहीं उठाए गए। उसके समक्ष कोई डेटा नहीं था। जयसिंह ने दोहराया कि न्यायालय राहत को संशोधित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह सिंधी आबादी और चैनल के संचालन की लागत के बारे में प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत आधिकारिक डेटा पर विवाद नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा कि भाषा को संरक्षित करने के लिए 20 करोड़ रुपये राज्य के लिए बहुत अधिक लागत नहीं है, जो संवैधानिक रूप से भाषाई विरासत की रक्षा करने के लिए बाध्य है।

सीजेआई ने कहा कि एक अलग डीडी चैनल शुरू करना किसी भाषा को संरक्षित करने का एकमात्र साधन नहीं हो सकता।

सीजेआई ने कहा,

"क्या कोई नागरिक यह कह सकता है कि अनुच्छेद 29 के तहत मेरी भाषा को संरक्षित करने के लिए अलग चैनल शुरू करने का आदेश होना चाहिए? भाषा को संरक्षित करने के अन्य साधन भी हैं। अधिक जागरूकता पैदा करें।"

जयसिंह ने जवाब दिया कि सार्वजनिक प्रसारण किसी भाषा को संरक्षित करने का सबसे प्रभावी साधन है।

सीजेआई ने कहा,

"जरूरी नहीं। यह समुदाय की प्रोफ़ाइल पर निर्भर करता है। यदि यह ऐसा समुदाय है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण है, तो सार्वजनिक प्रसारण महत्वपूर्ण साधन होगा। लेकिन अगर समुदाय शहरी हैं, उदाहरण के लिए, सिंधी, मैं समझता हूं, मूल रूप से शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। इसलिए सार्वजनिक प्रसारण एकमात्र साधन नहीं है। संधि मुख्य रूप से व्यापारिक समुदाय है।"

जब जयसिंह ने कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 29 की व्याख्या का मुद्दा उठाया गया तो सीजेआई ने जवाब दिया कि अनुच्छेद 29 किसी को भी अलग चैनल की मांग करने का अधिकार नहीं देता है।

सीजेआई ने कहा,

"मान लीजिए कि कोई भाषा विलुप्त होने के कगार पर है। कोई भी नागरिक यह नहीं कह सकता कि मेरे मौलिक अधिकारों की खातिर आपको अलग टीवी चैनल स्थापित करना चाहिए। इसके और भी तरीके हैं।"

सुनवाई के दौरान सीजेआई ने संयोगवश उल्लेख किया कि सीनियर एडवोकेट राम जेठमलानी भी सिंधी समुदाय से हैं। जयसिंह ने कहा कि वह भी सिंधी समुदाय से हैं। जेठमलानी के ही गांव से हैं। उन्होंने सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के प्रयासों का श्रेय जेठमलानी को दिया।

याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने केवल याचिका में उठाई गई प्रार्थनाओं पर ही विचार किया। याचिका खारिज होने से मामले का केवल यही पहलू समाप्त हो जाएगा।

याचिका एओआर पारस नाथ सिंह के माध्यम से दायर की गई थी। एडवोकेट रोहिन भट्ट ने जयसिंह की सहायता की।

केस टाइटल : सिंधी संगत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया डी नं. 43504/2024

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