गलत सजा आदेश के खिलाफ अपील न करने में राज्य की लापरवाही हाईकोर्ट को अपनी पुनर्विचार शक्तियों का प्रयोग करने से नहीं रोकती: सिक्किम हाईकोर्ट
सिक्किम हाईकोर्ट ने कहा कि वह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 397 के तहत अपनी पुनर्विचार शक्ति का प्रयोग कर सकता है, जब ट्रायल कोर्ट ने किसी अपराध के लिए आरोपी को गलत तरीके से न्यूनतम निर्धारित सजा से कम की सजा सुनाई हो।
जस्टिस मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान की खंडपीठ ट्रायल कोर्ट द्वारा सामूहिक बलात्कार के लिए दोषी ठहराए जाने के खिलाफ आरोपियों/अपीलकर्ताओं की याचिका पर विचार कर रही थी। ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता 1860 (IPC) की धारा 376D के तहत सामूहिक बलात्कार के लिए आरोपी को 12 साल के कारावास की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 376D IPC में प्रावधान है कि अपराध के लिए सजा बीस साल से कम नहीं होगी। इसने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा गलत थी।
कोर्ट ने कहा,
“इस प्रकार आईपीसी की धारा 376डी के तहत अपराध के लिए ए1 और ए2 पर ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई बारह साल की सजा गलत है, क्योंकि यह कानूनी प्रावधान से अलग है। कानून के जनादेश के विपरीत है।”
कोर्ट ने मोहम्मद हासिम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (सीआरएल.ए.सं.1218/2016) के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि जब कानून के तहत न्यूनतम सजा निर्धारित हो तो अदालतों के पास सजा कम करने का विवेक नहीं होता।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य/प्रतिवादी सीआरपीसी की धारा 377 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करने में विफल रहा, जिसके तहत राज्य अपर्याप्तता के आधार पर सजा के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकता है।
न्यायालय ने माना कि गलत सजा आदेश के खिलाफ अपील न करने में राज्य/प्रतिवादी की लापरवाही उसे धारा 397 सीआरपीसी के साथ धारा 401 सीआरपीसी के तहत अपनी पुनर्विचार शक्तियों का अतिक्रमण करने से नहीं रोकती है, जो सजा बढ़ाने के मामले में अभियुक्त को सुनवाई का अवसर प्रदान करती है।
उन्होंने कहा,
“यह टिप्पणी करना प्रासंगिक है कि गलत सजा के खिलाफ अपील न करने में राज्य-प्रतिवादी की लापरवाही और ढिलाई हाईकोर्ट को सजा बढ़ाने के लिए सीआरपीसी की धारा 397 के साथ धारा 401 के तहत पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से नहीं रोकती है। दोषी को निश्चित रूप से नोटिस में रखा जाना चाहिए। उसे सजा के सवाल पर सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए, चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हो या उसके वकील के माध्यम से।”
केस टाइटल- करण छेत्री बनाम सिक्किम राज्य (सीआरएल. ए. सं.07 ऑफ 2022) और नीमा शेरपा @ नानी को बाऊ बनाम सिक्किम राज्य (सीआरएल. ए. सं.08 ऑफ 2022)