3 साल की बच्ची को शायद ही समझ में आए कि कोई व्यक्ति उसके गुप्तांग को छू रहा है, उसे डर लगेगा: सिक्किम हाईकोर्ट

Update: 2024-06-19 08:49 GMT

सिक्किम हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) के तहत अपीलकर्ता की सजा के खिलाफ आपराधिक अपील पर फैसला करते हुए कहा कि "हमारे विचार से साढ़े तीन साल की बच्ची को शायद ही समझ में आए कि कोई व्यक्ति उसके गुप्तांग को छू रहा है, उसे कैसे डर लगेगा कि यह यौन उत्पीड़न है, यह वास्तव में आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय है।" विशेष ट्रायल कोर्ट ने साढ़े तीन साल की बच्ची के खिलाफ यौन उत्पीड़न करने के लिए POCSO Act की धारा 5(m) के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराया था।

जस्टिस मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान की खंडपीठ ने अपीलकर्ता को इस आधार पर बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष अपराध किए जाने की संभावना भी नहीं दिखा पाया। एफआईआर तब दर्ज की गई, जब एक अन्य पोक्सो मामले में जांच चल रही थी, जिसमें अपीलकर्ता ने नौ वर्षीय लड़के (पीडब्लू-1) का यौन उत्पीड़न किया, जो वर्तमान मामले में पीड़िता का भाई है।

हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य असंगत है। इसने नोट किया कि मजिस्ट्रेट को दिए गए अपने बयान में पीडब्लू-1 ने कहा कि अपीलकर्ता ने पीड़िता के मुंह और गुदा के अंदर अपना लिंग डाला था। हालांकि मुकदमे के दौरान उसने कहा कि अपीलकर्ता ने अपनी उंगली उसके गुदा के अंदर डाली थी। पीड़िता के पिता (पीडब्लू-5) ने कहा कि पीडब्लू-1 ने उसे बताया कि अपीलकर्ता ने उसकी बेटी के जननांगों को छुआ और उसके साथ खेला।

इसके अलावा, पीडब्लू-1 का वह बयान उसकी मां (पीडब्लू-4) के बयान से मेल नहीं खाता, जिसने कहा कि पीडब्लू-1 के अनुसार अपीलकर्ता ने पीड़िता की फ्रॉक उतारी और उसके पूरे शरीर को छुआ। पीडब्लू-4 ने कहा था कि उसने अपनी बेटी को घबराहट की स्थिति में पाया। पीडब्लू-4 के इस कथन के संबंध में कि घटना के बाद उसकी बेटी दहशत में थी, न्यायालय ने टिप्पणी की कि यह संभव नहीं है कि साढ़े तीन साल की बच्ची समझ पाए कि यौन उत्पीड़न क्या होता है।

इसमें कहा गया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने "नाबालिग बच्ची पर कथित यौन उत्पीड़न के अलग-अलग संस्करण दिए" और अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।

न्यायालय ने नोट किया कि पीडब्लू-4 और पीडब्लू-5 ने घटना के संबंध में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई और न ही उन्होंने या पीडब्लू-1 ने किसी को इस बारे में बताया। मजिस्ट्रेट के समक्ष पीडब्लू-1 के बयान की रिकॉर्डिंग के दौरान ही उसने अपनी बहन के खिलाफ घटना के बारे में बयान दिया।

इसके संबंध में न्यायालय ने कहा,

"अपराध का आरोप, जैसा कि पहले ही चर्चा की जा चुकी है, अस्थिर साक्ष्यों के आलोक में बाद का विचार प्रतीत होता है, जिस पर दोषसिद्धि के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता। पीडब्लू 1, 4 और 5 के साक्ष्य इस न्यायालय को यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित नहीं करते कि अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित किया।"

न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। धारा 29 POCSO Act के बावजूद, जो अभियुक्त के अपराध की धारणा प्रदान करता है, अभियोजन पक्ष अपराध के होने की संभावना भी स्थापित नहीं कर पाया।

कोर्ट ने आगे कहा,

“तथ्यों और परिस्थितियों के आलोक में हमारा विचार है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए निर्धारित मानदंडों को प्राप्त करने में विफल रहा है। हम POCSO Act, 2012 की धारा 29 के प्रावधानों के प्रति सचेत और जागरूक हैं। हालांकि, हम इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि साक्ष्य अपराध किए जाने की संभावना भी स्थापित नहीं करते हैं। किसी भी स्थिति में यह कथित पीड़िता का बयान नहीं है कि उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया।”

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया और अपीलकर्ता को बरी कर दिया।

केस टाइटल: फुरबा लेप्चा बनाम सिक्किम राज्य, सीआरएल.ए. नंबर 25/2023

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