राजस्थान हाईकोर्ट ने विधवा को 2 वर्षीय बच्चे की कस्टडी प्रदान की

Update: 2024-09-03 08:17 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने विधवा मां द्वारा 2 वर्षीय बच्चे के संबंध में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अनुमति दी। उक्त महिला पर ससुराल वालों द्वारा उसके पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था।

जस्टिस इंद्रजीत सिंह और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी-दादा-दादी के विपरीत मां प्राकृतिक अभिभावक और अच्छी वित्तीय स्थिति में होने के कारण बच्चे की कस्टडी की हकदार है।

याचिकाकर्ता ने अपने बेटे को उसके दादा-दादी द्वारा अवैध रूप से कस्टडी में रखने के संबंध में रिट दायर की थी। याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसके पति की 2024 में एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उसे स्कूल लेक्चरर के पद पर नियुक्त किया गया। वह अपने बेटे को दादा-दादी के पास छोड़कर अपनी ड्यूटी पर जाने के लिए अपने ससुराल चली गई थी। हालांकि उसके बाद दादा-दादी ने बेटे की कस्टडी उसे नहीं सौंपी।

इसके विपरीत प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पति की असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उन्होंने एक सुसाइड नोट छोड़ा था। इसके लिए याचिकाकर्ता को जिम्मेदार ठहराया। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सक्षम न्यायालय में आपराधिक शिकायत दर्ज की गई, जो अभी भी लंबित है। इस आलोक में वकील ने प्रस्तुत किया कि बच्चा मां की कस्टडी में सुरक्षित नहीं था। इसलिए उसे उसके दादा-दादी के पास ही रहना चाहिए।

न्यायालय प्रतिवादियों की दलीलों से सहमत नहीं था। उसने गौतम कुमार दास बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की स्थिरता के संबंध में कोई कठोर नियम नहीं बनाया जा सकता। हालांकि, ल नाबालिग बच्चे की कस्टडी के सभी मामलों में एक सामान्य सूत्र बच्चे का सर्वोपरि कल्याण रहा है।

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि सबसे पहले मां नाबालिग बच्चे की स्वाभाविक अभिभावक है। दूसरी बात वह सुशिक्षित और आर्थिक रूप से सुदृढ़ महिला है, जबकि दादा सिर्फ 8वीं पास हैं, ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं और उनके पास नियमित आय का कोई स्रोत नहीं है। न्यायालय ने माना कि इस प्रकाश में मां बच्चे के कल्याण और उसके उज्ज्वल भविष्य का अच्छी तरह से ख्याल रख सकती है।

न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि दायर आपराधिक शिकायत के संबंध में माँ के बारे में कोई प्रतिकूल स्थिति रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई।

तदनुसार, याचिका को अनुमति दी गई और न्यायालय ने दादा-दादी को बच्चे की हिरासत मां को सौंपने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- कुसुम लता बनाम राजस्थान राज्य

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