धारा 193(9) BNSS ने ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना पुलिस रिपोर्ट दाखिल करने के बाद आगे की जांच पर रोक लगाई: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 193(9) के प्रावधान के आलोक में जहां पुलिस ने मुख्य आरोपी के खिलाफ जांच के बाद पहले ही रिपोर्ट दाखिल की, ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना आगे कोई जांच नहीं की जा सकती।
धारा 193 जांच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट के बारे में बात करती है और धारा 193(9) में नीचे लिखा,
“(9) इस धारा में कोई भी बात किसी अपराध के संबंध में आगे की जांच को बाधित करने वाली नहीं मानी जाएगी, जब उपधारा (3) के तहत रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेज दी गई हो और जहां ऐसी जांच के बाद पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य प्राप्त करता है तो वह मजिस्ट्रेट को ऐसे साक्ष्य के संबंध में एक और रिपोर्ट या रिपोर्टें उस रूप में भेजेगा, जैसा कि राज्य सरकार नियमों के तहत प्रदान कर सकती है। उपधारा (3) से (8) के प्रावधान जहां तक संभव हो ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के संबंध में लागू होंगे जैसे कि वे उपधारा (3) के तहत भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं बशर्ते कि मुकदमे के दौरान आगे की जांच मामले की सुनवाई करने वाले न्यायालय की अनुमति से की जा सकती है। इसे नब्बे दिनों की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा, जिसे न्यायालय की अनुमति से बढ़ाया जा सकता है।”
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के लिए दर्ज एफआईआर के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पहले से ही चार आरोप पत्र दाखिल किए जा चुके थे। याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं बताई गई, न ही उसका नाम कहीं भी आरोपी के रूप में दर्ज किया गया।
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता पर किसी भी अपराध के लिए कोई दोष नहीं बनता और याचिका का निपटारा कर दिया।
केस टाइटल: गजेंद्र सिंह शेखावत बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।