पत्नी-एडवोकेट के प्रभाव के कारण वकील न मिलने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने पति का मामला जयपुर ट्रांसफर किया
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि यदि किसी पक्षकार को स्थानीय स्तर पर वकील नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि उसके विरोधी पक्ष के प्रभाव के चलते बार एसोसिएशन ने उसके खिलाफ माहौल बना दिया है तो यह न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है। इसी आधार पर अदालत ने पति-पक्ष के वैवाहिक एवं आपराधिक मामलों को सवाई माधोपुर से जयपुर स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस अनुप कुमार धंड की एकलपीठ ने कहा कि न्याय पाने का अधिकार और वकील की सहायता प्राप्त करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। यदि किसी पक्षकार को वकील न मिलने का कारण स्थानीय बार एसोसिएशन का किसी के प्रभाव में कार्य करना है तो यह न्यायिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक है और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत को प्रभावित करता है।
अदालत ने कहा,
“अदालतें न्याय के मंदिर हैं और सभी वादकारियों के लिए खुली रहनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्ष सुनवाई का संवैधानिक अधिकार रखता है। उसे न्यायालय में अपना पक्ष रखने से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जा सकता।”
मामला पति-पत्नी के वैवाहिक विवाद से जुड़ा है, जिसमें पत्नी ने पति के खिलाफ आपराधिक एवं भरण-पोषण से सम्बंधित कार्यवाही आरंभ की हुई थी। इसी दौरान पत्नी, जो स्वयं वकील है, उसने स्थानीय बार एसोसिएशन को पत्र लिखकर पति का केस लड़ रहे वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की।
उस पत्र के आधार पर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने पति के वकीलों को नोटिस जारी कर दिए। परिणामस्वरूप कोई भी वकील सवाई माधोपुर की अदालत में पति का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस पर पति ने अपने मामले स्थानांतरित करने की याचिका दायर की।
पत्नी की ओर से यह दलील दी गई कि नोटिस उसी दिन वापस ले लिए गए। हालांकि, अदालत ने कहा कि केवल नोटिस वापस ले लेने से समस्या समाप्त नहीं होती, क्योंकि यह स्पष्ट है कि पत्नी अपने प्रभाव से बार एसोसिएशन को वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करवाने में सफल हुई, जिससे निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद खत्म हो गई।
अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि विधिक सहायता प्राप्त करना अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है, यदि याचिकाकर्ता अपनी पसंद का वकील नियुक्त नहीं कर पा रहा तो राज्य को उसकी ओर से उचित कानूनी सहायता उपलब्ध करानी होगी।
अदालत के अनुसार स्थानीय वातावरण और विरोधी पक्ष के प्रभाव के कारण वकील न मिलने की स्थिति दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 407 के तहत कार्यवाही स्थानांतरित करने का वैध आधार है।
अदालत ने टिप्पणी की,
“प्रतिवादी-शिकायतकर्ता के लिए यह असुविधा का प्रश्न नहीं हो सकता कि मामले सवाई माधोपुर के बजाय जयपुर में चलें, क्योंकि वह अपने अधिवक्ता होने के पद का दुरुपयोग कर रही है और किसी भी वकील को याचिकाकर्ता का पक्ष रखने नहीं दे रही। ऐसे कृत्य निंदनीय हैं।”
अंततः अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए निर्देश दिया कि सभी लंबित कार्यवाहियों को सवाई माधोपुर से जयपुर ट्रांसफर किया जाए।