राजस्थान हाईकोर्ट ने पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट को पढ़ने लायक नहीं पाए जाने के बाद फरवरी 2026 से डिजिटल मेडिको-लीगल रिपोर्ट अनिवार्य की

Update: 2025-11-20 06:51 GMT

डॉक्टरों और मेडिकल ज्यूरिस्टों द्वारा मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार करने के "दयनीय तरीके" और खराब ढंग को उजागर करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश जारी किए, जिसमें 1 फरवरी, 2026 से मेडिको लीगल एग्जामिनेशन और पोस्ट मॉर्टम रिपोर्टिंग (MedLEaPR) सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया।

जस्टिस रवि चिरानिया की बेंच आवेदक द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर अपने भाई की हत्या का आरोप था। इसमें कोर्ट को पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट समझने में गंभीर कठिनाई हुई।

इस रोशनी में यह राय दी गई कि देश में मजबूत डिजिटल सिस्टम होने के बावजूद, मेडिकल रिपोर्ट हाथ से लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से तैयार की जाती थीं, जो पढ़ने लायक नहीं थीं और समझ से बाहर थीं।

कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में सॉफ्टवेयर के सफल कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला और कहा कि 13 साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी राजस्थान राज्य इसे लागू करने में विफल रहा है।

प्रधान सचिव, चिकित्सा और स्वास्थ्य ने कोर्ट को सूचित किया कि हालांकि जनवरी, 2025 से राज्य ने इस सॉफ्टवेयर का उपयोग करना शुरू कर दिया। हालांकि, यह पूरी तरह से चालू नहीं है। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि जिन मामलों में पुलिस ने डिजिटल रिपोर्ट के लिए अनुरोध नहीं किया, वहां रिपोर्ट हाथ से ही तैयार की गईं।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

“उपरोक्त बयान बहुत चौंकाने वाला और आश्चर्यजनक है। संबंधित मामलों के पुलिस अधिकारियों/जांच अधिकारियों को सॉफ्टवेयर के माध्यम से रिपोर्ट तैयार करने का विकल्प देना बिल्कुल अस्वीकार्य है। जिस उद्देश्य के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश पर NIC, हरियाणा द्वारा पहली बार सॉफ्टवेयर तैयार किया गया, उसे राज्य ने पुलिस अधिकारियों जिसमें जांच अधिकारी भी शामिल हैं, उसको रिपोर्ट तैयार करने में विकल्प देकर विफल कर दिया।”

इस पृष्ठभूमि में राज्य सरकार को निम्नलिखित निर्देश जारी किए गए

1 फरवरी, 2026 से सरकारी और निजी संस्थानों के सभी डॉक्टरों द्वारा सॉफ्टवेयर के माध्यम से सभी मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार करने के लिए 15 दिनों के भीतर एक विस्तृत अधिसूचना जारी करना।

सभी पुलिस अधिकारियों, जांच एजेंसियों और अधिकारियों को सभी मामलों में CCTNS के माध्यम से ऐसी मेडिकल लीगल रिपोर्ट तैयार करने के लिए अनुरोध करने के लिए सर्कुलर जारी करना। किसी भी हालत में 1 फरवरी, 2026 के बाद रिपोर्ट हाथ से तैयार नहीं की जाएंगी। अगर इसका पालन नहीं किया गया तो इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर और पुलिस सुपरिटेंडेंट पर्सनली ज़िम्मेदार होंगे।

जब तक सिस्टम पूरी तरह से लागू नहीं हो जाता, सभी रिपोर्ट कैपिटल लेटर्स में साफ़ और पढ़ने लायक हैंडराइटिंग में तैयार की जाएंगी। उनके साथ डॉक्यूमेंट की एक टाइप्ड कॉपी भी होगी।

ऐसी रिपोर्ट के लिए नए फॉर्मेट 10 दिनों के अंदर जारी किए जाएं, जिनमें पर्याप्त जगह और एक्स्ट्रा कॉलम हों ताकि कोई ओवरलैपिंग या क्रॉस-क्रॉसिंग न हो।

यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी रिपोर्ट एक प्रॉपर QR कोड के साथ अपलोड की जाएं ताकि उनकी ऑथेंटिसिटी और जिस केस के लिए वे तैयार की गईं, उसकी डिटेल्स चेक की जा सकें।

सभी रिपोर्ट में पैथोलॉजिस्ट की स्पेसिफिक राय और निष्कर्ष के साथ-साथ किए गए टेस्ट के पूरा होने के बारे में फिजिकल सिग्नेचर होने चाहिए।

निष्पक्ष और समय पर जांच के लिए राज्य यह सुनिश्चित करे कि जांच के दौरान इकट्ठा किए गए सभी सैंपल फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए FSL में, इकट्ठा करने की तारीख से ज़्यादा से ज़्यादा 5 दिनों के अंदर जमा किए जाएं और उसके बाद पुलिस स्टेशन में न रहें।

FSL में सैंपल भेजने या प्राप्त करने की जानकारी संबंधित IO के तय ई-मेल और मोबाइल नंबर पर खुद से जेनरेटेड ई-मेल और SMS द्वारा दी जानी चाहिए।

यह सुनिश्चित किया जाए कि सॉफ्टवेयर में IO/अधिकृत व्यक्ति FSL में फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए जमा किए गए सैंपल का स्टेटस ट्रैक कर सके।

यह सुनिश्चित किया जाए कि सॉफ्टवेयर में रिपोर्ट तैयार करते और स्टोर करते समय कोई भी डेटा किसी भी अनधिकृत व्यक्ति के साथ शेयर न किया जाए। डेटा को डिजिटल या अन्य तरीकों से किसी भी अनधिकृत एक्सेस, लीकेज, शेयरिंग आदि से सुरक्षित और प्रोटेक्टेड रखा जाना चाहिए।

इन निर्देशों को लागू करने के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान किया जाए।

कोर्ट ने राज्य को आदेश के 45 दिनों के भीतर एक कंप्लायंस रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया, जिसमें सभी CMHOs, सभी सरकारी अस्पतालों के हेड/सुपरिटेंडेंट, सभी प्राइवेट अस्पतालों, क्लीनिकों, अन्य संस्थानों आदि के अधिकृत व्यक्ति/हेड का एफिडेविट शामिल होगा, जिसमें ऊपर जारी किए गए निर्देशों की जानकारी और यदि आवश्यक हो तो अनुपालन के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताया जाएगा।

इसके अलावा यह भी कहा गया कि नोटिफिकेशन/सर्कुलर में साफ तौर पर बताया जाएगा कि अगर 1 फरवरी 2026 के बाद रिपोर्ट हाथ से बनाई गईं और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया गया और अगर ऐसा किसी भी मामले में पाया गया तो राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम 1958 के तहत ज़िम्मेदार सरकारी डॉक्टर और अन्य ज़िम्मेदार सरकारी अधिकारियों और प्राइवेट एस्टैब्लिशमेंट के अधिकृत व्यक्तियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

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