राजस्थान हाइकोर्ट ने फोर्टिस अस्पताल में कथित रूप से अवैध किडनी ट्रांसप्लांट में शामिल मेडिकल अधिकारियों के खिलाफ FIR रद्द करने से इनकार किया

Update: 2024-06-03 08:50 GMT

राजस्थान हाइकोर्ट ने जयपुर के फोर्टिस अस्पताल में अवैध किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े अंतरराष्ट्रीय रैकेट से संबंधित एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाली आपराधिक विविध याचिका को खारिज कर दी।

डॉ. ज्योति बंसल और डॉ. जितेंद्र गोस्वामी जो जयपुर के फोर्टिस अस्पताल में मेडिकल अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं, उनको भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 420, 419, 471 और 120-बी के तहत दर्ज एफआईआर में नामित किया गया। जांच के दौरान उनके खिलाफ धारा 370 आईपीसी के साथ-साथ मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 (TOHO Act, 1994) की धारा 18 और 19 के तहत अतिरिक्त आरोप लगाए गए।

जस्टिस सुदेश बंसल ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा,

"इस न्यायालय की राय में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता, जिसके तहत आरोपित एफआईआर रद्द की जा सके। जांच रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता नंबर 1 को आकाश, प्रशांत यादव और गोपाल नामक दलालों के साथ टेलीफोन पर संपर्क में पाया गया। साथ ही गिरिराज शर्मा के साथ उनके बैंक अकाउंट्स से पैसे का लेन-देन भी रिकॉर्ड में आया है। इस तरह के पैसे के लेन-देन को अवैध रूप से किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन के लिए वेतन के अलावा भुगतान का हिस्सा माना जाता है।"

जस्टिस बंसल ने कहा,

"जांच में पता चला है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 ने याचिकाकर्ता नंबर 2 के टीम सदस्य के रूप में किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन किया और दोनों याचिकाकर्ता साथ ही समन्वयक गिरिराज शर्मा मणिपाल अस्पताल जयपुर में काम कर रहे थे और फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल जयपुर में साथ शामिल हुए थे। वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 419, 420, 370, 467, 468, 471 और 120-बी के तहत अपराध और TOHO Act की धारा 18 और 19 के तहत अपराध, दोनों शामिल हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपित एफआईआर में संज्ञेय अपराध शामिल नहीं है।"

आरोपित एफआईआर के अनुसार फोर्टिस अस्पताल, जयपुर में अवैध किडनी ट्रांसप्लांट में शामिल अंतरराष्ट्रीय रैकेट का भंडाफोड़ किया गया। ये अपराध आईपीसी की धारा 370 और TOHO Act की धारा 18 और 19 के तहत दर्ज किए गए। इसके अतिरिक्त TOHO Act की धारा 13(3)(iv) भी लागू की गई। आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने दलालों से संपर्क किया और फोर्टिस में किडनी ट्रांसप्लांट समन्वयक के साथ मौद्रिक लेनदेन में शामिल रहे।

न्यायालय ने कहा कि यह सुस्थापित कानूनी सिद्धांत है कि एफआईआर/शिकायतों को रद्द करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाइकोर्ट के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए। केवल उन दुर्लभ मामलों में जहां यह प्रथम दृष्टया स्थापित हो कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता, या उनकी संलिप्तता निराधार है या व्यक्तिगत रंजिश के कारण बदला लेने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से प्रेरित है।

इस बात पर जोर देते हुए कि एफआईआर रद्द करने का उपाय नियमित नहीं है, बल्कि इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में ही लागू किया जा सकता है, न्यायालय ने कहा,

"याचिकाकर्ताओं द्वारा और उनकी ओर से दायर की गई वर्तमान याचिका असाधारण श्रेणी में नहीं आती है और याचिकाकर्ताओं का मामला किसी भी श्रेणी में नहीं आता है, जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य बनाम चौधरी भजन लाल [1992 अनुपूरक (1) एससीसी 335] के मामले में बताया गया।"

परिणामस्वरूप न्यायालय ने आपराधिक याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल- डॉ. ज्योति बंसल और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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