15 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार ED अधिकारी को जमानत देने से राजस्थान हाईकोर्ट ने किया इनकार
राजस्थान हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अधिकारी और उसके सहयोगी को जमानत देने से इनकार कर दिया। उक्त आरोपियों को पिछले साल नवंबर में राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने चिटफंड से जुड़े मामले को निपटाने के लिए 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने यह कहते हुए उनकी जमानत याचिका खारिज की कि आर्थिक अपराध गंभीर अपराध हैं, जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं और देश के विकास पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं।
न्यायालय ने आरोपी व्यक्तियों द्वारा उठाए गए इस तर्क को दृढ़ता से खारिज कर दिया कि चूंकि उनके अभियोजन के लिए विभाग द्वारा काफी समय तक मंजूरी नहीं दी गई, इसलिए उन्हें याचिकाकर्ताओं को मंजूरी दी जानी चाहिए।
अदालत ने टिप्पणी की,
"...वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता की हिरासत की अवधि मुश्किल से चार महीने है और आज तक विभाग ने याचिकाकर्ता के खिलाफ मंजूरी देने या न देने के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया है... कथित तौर पर अपराध किया गया, जो याचिकाकर्ता नवलकिशोर प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए अपनी आधिकारिक स्थिति और पद के दुरुपयोग से संबंधित है... याचिकाकर्ता इस स्थिति का लाभ नहीं उठा सकते हैं कि उनके चार महीने बीत जाने के बाद भी आज तक कोई अभियोजन मंजूरी जारी नहीं की गई।''
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा व्यक्तिगत लाभ की जानबूझकर इच्छा के साथ सोचा-समझा अपराध किया गया और याचिकाकर्ताओं का ऐसा कृत्य सफेदपोश अपराध के समान है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया।
गौरतलब है कि ED अधिकारी नवलकिशोर मीना और उनके सहयोगी बाबूलाल मीना को पिछले साल ACB ने तब गिरफ्तार किया, जब एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई कि एनके मीना चिटफंड इंफाल में घोटाला मामले में उसे गिरफ्तार नहीं करने के लिए 17 लाख रुपये की रिश्वत मांग रहे हैं।
उक्त मांग को आगे बढ़ाते हुए राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ जिले में उप रजिस्ट्रार कार्यालय में तैनात जूनियर असिस्टेंट सहायक बी. मीना के कब्जे से 15 लाख रुपये की वसूली की गई, जब उसे जांच के दौरान रंगे हाथों पकड़ा गया।
एनके मीना और बी मीना दोनों पर भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया। जांच के बाद उनके खिलाफ 1988 के अधिनियम की धारा 7 और 7 ए के तहत अपराध के लिए आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।