हाईकोर्ट का मानवीय फैसला - सास-ससुर के भरण-पोषण के लिए बहू के वेतन से कटेगी राशि
राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने एक संवेदनशील आदेश में कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य मृत कर्मचारी के पूरे परिवार का भरण-पोषण करना है, न कि किसी एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाना।
जस्टिस फरजन्द अली की एकल पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति अनुकम्पा नियुक्ति पाता है, तो उस पर यह नैतिक और कानूनी दायित्व होता है कि वह मृत कर्मचारी के सभी आश्रितों का ध्यान रखे।
मामले के अनुसार अलवर निवासी भगवान सिंह सैनी के पुत्र राजेश कुमार सैनी की 2015 में नौकरी के दौरान मृत्यु हो गई थी। विभाग ने भगवान सिंह को अनुकम्पा नियुक्ति का अवसर दिया, पर उन्होंने अपने बेटे की पत्नी शशि कुमारी के हित में यह अवसर छोड़ दिया। नियुक्ति के समय शशि कुमारी ने शपथ-पत्र में वचन दिया कि वह सास-ससुर के साथ रहेगी और उनकी देखभाल करेगी।
मगर पति की मौत के कुछ ही दिनों बाद वह मायके चली गई और सास-ससुर को अकेला छोड़ दिया। वृद्ध भगवान सिंह ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर विभाग से अनुरोध किया कि बहू के वेतन का कुछ हिस्सा उन्हें जीवनयापन हेतु दिया जाए, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंतत: उन्होंने S.B. Civil Writ Petition No. 1149/2018 (Bhagwan Singh Vs Suptd Engineer Pawas) दायर कर हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
जस्टिस फरजन्द अली ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति दया का कार्य है, अधिकार नहीं। यह किसी व्यक्ति की योग्यता पर नहीं, बल्कि परिवार की जरूरत और मृतक कर्मचारी के प्रति सहानुभूति के आधार पर दी जाती है। कोर्ट ने माना कि शशि कुमारी ने नियुक्ति पाने के बाद सास-ससुर की जिम्मेदारी निभाने के वचन का उल्लंघन किया, जो कि अन्याय, नैतिकता और संवेदना की भावना के विपरीत है।
हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 1 नवम्बर, 2025 से शशि कुमारी के वेतन से 20,000 प्रतिमाह काटकर सीधे भगवान सिंह के बैंक खाते में जमा किए जाएं, ताकि वह अपनी जीविका चला सकें। यह व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक याचिकाकर्ता जीवित हैं या सक्षम प्राधिकारी अन्य आदेश न दे।
लेखक- एडवोकेट रजाक खान हैदर @ लाइव लॉ नेटवर्क