बेसहारा अनाथ युवती के लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने अपनाया उदार रवैया, कहा-सौतेली माता का राजकीय सेवा में होना अनाथ युवती की अनुकम्पात्मक नियुक्ति में बाधक नहीं
राजस्थान हाईकोर्ट ने बेसहारा अनाथ युवती के लिए उदार रवैया अपनाते हुए राज्य सरकार की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि सौतेली माता के राजकीय सेवा में कार्यरत होने के कारण अनाथ युवती को अनुकम्पात्मक नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
जस्टिस अरुण मोंगा की एकलपीठ ने कहा कि अनाथ याचिकाकर्ता ने अपने अस्तित्व के लिए आजीविका की तलाश के लिए इस न्यायालय का रुख किया है। इसलिए यह जरूरी है कि उसके पिता के निधन के बाद उसे सहायता प्रदान करने के लिए लागू अनुकम्पा नीतियों का लाभ दिया जाए। अनुकम्पात्मक नीति का परोपकारी इरादा परिवार के कमाने वाले की मृत्यु पर जीवित रहने का अवसर प्रदान करना है, ताकि उनके सामने वित्तीय संकट न आए और उन्हें गरीबी में जीवन न बिताना पड़े। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि मृत सरकारी कर्मचारी के बदले में सेवा प्रदान करके आश्रित को चुनौतीपूर्ण अवधि के दौरान आवश्यक वित्तीय सहायता प्राप्त हो।
जस्टिस मोंगा ने याचिकाकर्ता की परिस्थितियों पर विचार करते हुए कहा कि सौतेली माता का याचिकाकर्ता के प्रति कोई कानूनी दायित्व नहीं है और सौतेली माता को सरकारी नौकरी इस शर्त के साथ नहीं दी गई थी कि उसके पिता के निधन के बाद उसे याचिकाकर्ता की मदद करनी होगी।
इसके अलावा याचिकाकर्ता न तो अपनी सौतेली माता की देखरेख में है और न ही उसके साथ रहती है। यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के पिता (उसके पति) के निधन के बाद सौतेली माता जीवन में आगे बढ़ गई है। उपरोक्त विशेष परिस्थिति को देखते हुए याचिका को आवश्यक रूप से अनुमति दी जानी चाहिए।
पहले मां, फिर पिता को खोया, सरकार ने भी छोड़ा बेसहारा!
जोधपुर जिले के पीपाड़ सिटी निवासी 19 वर्षीय अनुसूचित जाति वर्ग की दलित युवती गुनगुन की ओर से अधिवक्ता रजाक खान हैदर ने रिट याचिका दायर कर हाईकोर्ट को बताया कि महज दो वर्ष की आयु में जन्म देने वाली मां और फिर 18 वर्ष की आयु में पिता को खोने का सदमा झेल रही दलित युवती की विशेष परिस्थितियों के बावजूद राज्य सरकार के माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा नियमों की संकीर्ण व्याख्या कर अनुकम्पात्मक नियुक्ति का आवेदन खारिज कर दिया है।
माध्यमिक शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अध्यापक के पद पर कार्यरत याचिकाकर्ता के पिता ने वर्ष 2006 में याचिकाकर्ता की माता की असामयिक मृत्यु होने पर वर्ष 2008 में राजकीय सेवा में कार्यरत महिला से पुनर्विवाह किया था। वर्ष 2022 में सेवाकाल के दौरान याचिकाकर्ता के पिता की भी असामयिक मृत्यु होने पर याचिकाकर्ता अनाथ और बेसहारा हो गई।
ऐसे में उसने माध्यमिक शिक्षा विभाग में अनुकम्पात्मक नियुक्ति के लिए आवेदन किया, जिसे विभाग ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि याचिकाकर्ता की जीवित माता के राजकीय सेवा में नियोजित होने से उन्हें अनुकम्पात्मक नियुक्ति नहीं मिलेगी।
एडवोकेट का तर्क-विशेष परिस्थितयों में नियमों के समग्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए उदार व्याख्या की जरूरत
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए अधिवक्ता मनीष व्यास और रजाक खान हैदर ने तर्क दिया कि राजस्थान मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकम्पात्मक नियुक्ति नियम, 1996 का उद्देश्य राज्य कर्मचारी के असामयिक निधन पर उनके आश्रितों में से किसी एक को राजकीय सेवा में नियोजित कर मृतक के सभी पारिवारिक सदस्यों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
हालांकि नियम-5 के अनुसार ऐसा नियोजन उन मामलों में अनुज्ञेय नहीं होता है, जहां पति, पत्नी, पुत्र या अविवाहित पुत्री पहले से राजकीय सेवा में नियोजित हो, लेकिन इसी नियम का उपनियम यह भी अपेक्षा करता है कि अनुकम्पात्मक आधार पर नियुक्त कार्मिक मृतक आश्रित अन्य सदस्यों का भरण-पोषण करने के लिए वचनबद्ध रहेगा। मृतक कार्मिक के सभी आश्रितों का भरण-पोषण उक्त नियम का समग्र उद्देश्य है। याचिकाकर्ता की सौतेली माता ने याचिकाकर्ता को न तो दत्तक ग्रहण किया है और न ही वह उसका भरण-पोषण करने के लिए तत्पर है।
वह अपने पुत्र के साथ अपना स्वतंत्र जीवन जी रही हैं। ऐसे में याचिकाकर्ता के लिए जीवनयापन का संकट खड़ा हो गया है। राजकीय सेवा में पहले से चयनित पत्नी एवं याचिकाकर्ता अविवाहित पुत्री दोनों एक ही परिवार की दो अलग-अलग इकाई के सदस्य होने की विशेष परिस्थितयों वाले इस प्रकरण में अनुकम्पात्मक नियुक्ति नियम, 1996 के समग्र उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए नियम-5 की संकीर्ण नहीं बल्कि उदार व्याख्या किए जाने की आवश्यकता है।
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने दो माह में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने का आदेश पारित किया।
एसबी सिविल रिट पिटिशन नम्बर 19232/2023 (गुनगुन बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य)